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________________ ( ७५ ) कार से देखा जाता है, ठीक उसी प्रकार विशेष रूप धर्म को छोड़ कर जीवादि तत्त्वों को सामान्यतया एक रूप से देखा जाता है, परंच उक्त शत १०० घटों को जव जन पृथक् २ भाव से ग्रहण करते हैं, तब वे अपने २ स्वीकार किये हुए घट को पृथक् २ रूप से देखते हैं । जैसे कि-यह हमारा घट पीतवर्ण वाला है तथा यह इस का घट कृष्ण रंग वाला है अर्थात् समुदाय में भेदक लक्षण द्वारा वे मूढ़ता को प्राप्त नहीं होते, यही श्राप का परम उपकार है, जो पदार्थो का यथार्थ स्वरूप वर्णन किया है।। नैगमो मन्यते वस्तु तदेतदुभयात्मकम् निर्विशेष न सामान्य विशेषोऽपि न तद्विना ॥५॥ तदेतत्त्वदुक्लपूर्वो नैगमो नैगमनामा नय उभयात्मकं वस्तु मन्यते उभौ द्वौ सामान्यविशेषौ अवयवौ श्रात्मा स्वरूपं यस्य वस्तुनस्तदुभयात्मकं तत्ताहरूपं वस्तु पदार्थ मन्यते स्वीकरोति । कुतस्त्वदाज्ञायां निर्विशेष सामान्य न निर्गतो दूरीभूतो विशेषो विशेषणं पर्यायो वा यस्य तनिर्विशेषमीग्रूपं सामान्य न विद्यते तद्विना सामान्य विशेष वा द्रव्यं विना रहितो विशेषो न विद्यतेऽत उभयात्मकं गृह्णाति । यदि सम्यग्दृष्टिरयमितिचेन्न-अयं हि द्रव्यं पर्यायं च द्वयमपि सामान्यविशेषयुक्तं मन्यते, ततो नायं सम्यग्दृष्टिरित्यर्थः ॥५॥ भा०-नैगम नय पदार्थ के दोनों धर्म मानता है अर्थात् पदार्थ सामान्यधर्म और विशेषधर्म दोनों धर्मों के धारण करने वाला होता है, परन्तु सामान्य धर्म से विशेष धर्म पृथक् नहीं हो सकता और नाहीं विशेषधर्म सामान्यधर्म से पृथक् हो सकता है । अतएव नैगमनय के मत से सर्व पदार्थ उक्त दोनों धर्मों के धारण करने वाले देखे जाते हैं. किन्तु द्रव्य और पर्याय रूप प्रक्रियाओं को सम्यग्दृष्टि सामान्य और विशेष रूप धर्मों से युक्त मानता है। तात्पर्य यह है कि-द्रव्य पयार्य युक्त तो होता ही है; अतएव सर्व द्रव्य सामान्य और विशेष रूप धर्मों से युक्त प्रतिपादन किया गया है। अव संग्रह नय का विषय कहते हैं। संग्रही मन्यते वस्तु सामान्यात्मकमेव हि सामान्यन्यतिरिक्तोऽस्ति न विशेषः खपुष्पवत् ॥६॥ संग्रहः-संग्रह नामा नयस्तु सामान्य द्रव्यसत्तामात्रं जातिमात्रं वा यत्तत् सामान्यं तदेवात्मा स्वरूप यस्य तत्तथा तद्वस्तु एव वस्तुतया मन्यते कस्माद्धि यस्मात् सामान्यव्यतिरिक्तः सामान्यात् पृथक्भूतो विशषो नास्ति न विद्यते तद्विना विशषः खपुप्पवद् आकाशकुसुमतुल्योऽस्तीति न चोपदेशो वर्त्तते तस्मात् ॥६॥
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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