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पचम अध्याय विभिन्न अपेक्षाओ से परमाणु पुद्गल ७५
क्रिया कर सकना श्रीर
(४) ग्रन्यो के साथ अवस्थान करते हुए वहाँ में बिना किसी रुकावट के देशान्तर कर सकना ।
परमाणु-पुद्गल में ये चारो रुपक सम्भव है । ग्रत परमाणुपुद्गल अप्रतिघाती है। गतिमान या क्रियावान परमाणु- पुद्गल किसी अन्य पुद्गल, किमी जीव, किसी अन्य द्रव्य से रोका नही जा सकता है। गतिमान परमाणु- पुद्गल मवके भीतर से गति करता हुआ निकल जाता है । जहाँ ग्रन्य पुद्गल या जीव या अन्य द्रव्य है, उमी श्राकाश-प्रदेश में जाकर वह श्रवगाह कर सकता है। परमाणु-पुद्गल अन्यो के साथ श्रवगाह करता हुश्रा, निरपेक्ष भाव से कम्पन आदि क्रिया कर सकता है, ऐसा स्पष्ट उल्लेख कही नही मिला है। लेकिन ऐसा होना सम्भव है ।
पूर्ण स्वतन्त्रता और अप्रतिघातित्व
परमाणु- पुद्गल निज में श्रप्रतिधाती है तथा दूसरो के प्रति भी प्रतिघाती है अर्थात् दूमरो को भी प्रतिहत नही करता है ।
इस प्रकार परमाणु- पुद्गल पूर्ण स्वतन्त्र है, जब जो इच्छा हुई, सो की, उसे कोई रोकने वाला नही है । लेकिन पूर्णता मे नजर लगने का डर रहता है, इसलिए परमाणु- पुद्गल ने अपनी स्वतन्त्रता में, अपने प्रतिघातित्व में, तीन अपवाद लगा रखे है अर्थात् तीन अवस्थानी में परमाणु-पुद्गल ने प्रतिहत होना स्वीकार कर रखा है। निम्नलिखित तीन अवस्था में परमाणु-पुद्गल