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जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
प्रतिहत होता है। सिद्धिसेनतत्वार्थ टीका - (१) धर्मास्तिकाय के अलोक में नहीं होने से, उपकार के
अभाव में, लोकान्त में जाकर परमाणु-पुद्गल प्रतिहत
हो जाता है, अलोक में नही जा सकता है। (२) अन्य परमाणु-पुद्गल या स्कन्ध-पुद्गल के साथ सघात
को प्राप्त होकर स्निग्धता, रूक्षता नियमो के अनुसार उन परमाणु-पुद्गलो या स्कन्ध-पुद्गल के साथ बन्धन को प्राप्त होकर, प्रतिहत होता है, अपनी स्वतन्त्रता,
नियत् काल के लिए, खो देता है। (३) विस्रसा परिणाम से वेग से गति करते हुए परमाणु
पुद्गल का यदि किसी दूसरे विस्रमा परिणाम से वेग से गति करते हुए परमाणु-पुद्गल से आयतन सयोग हो, तो वह परमाणु-पुद्गल निज में भी प्रतिहत हो सकता है तथा दूसरे परमाणु को भी प्रतिहत कर सकता है। अटकावेगा ही या अटकेगा ही, ऐसा नियम नही
मालूम होता है। उपर्युक्त प्रतिघातो के क्रम से ये तीन नाम है-(१) उपकाराभाव-प्रतिघात, (२) वन्धन-परिणाम-प्रतिघात, और (३) गतिवेग-प्रतिघात।
प्रतिघातो का विवेचन
परमाणु-पुद्गल की गति मे धर्मास्तिकाय अवलम्बनात् उपकारी