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जन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
हुए है। (४) गति व क्रिया प्रारम्भ करने से यह किस प्रकार की गति
व क्रिया करेगा यह भी अनियत है। यह कम्पन करेगा, आवर्तन करेगा, या देशान्तर करेगा, या कम्पन
तथा देशान्तर एक साथ करेगा यह अनियत है। (५) गति व क्रिया आरम्भ करने से कितनी मन्द या तेज
चाल से गति करेगा, यह भी अनिश्चित है। एक समय में एक प्रदेश की देशान्तरवाली चाल ग्रहण करेगा या एक समय में लोकान्तप्रापीणि चाल ग्रहण करेगा या इनकी मध्यवर्ती कोई चाल ग्रहण करेगा, यह
भी अनियत है। उपर्युक्त ५ अनियतो के सम्बन्ध मे सूत्रो में या सिद्धान्त-ग्रन्थो में हमें कोई विशद विवेचन नजर नही आया, खोज जारी है।
प्रतिघाती-अप्रतिघाती अपेक्षा-परमाणु-पुद्गल अप्रतिघाती है। अप्रतिघाती अर्थात् जिसको कोई प्रतिहत नही कर सकता है, बाधा नहीं दे सकता है, तथा रोक नही सकता है।
अप्रतिघातित्व के चार रुपक हो सकते है(१) देशान्तर गति में रुकावट न होना, (२) जहाँ अन्य हो, वहां जाकर अनके साथ अवस्थान कर
सकना, (३) जहाँ अन्य हो, वहाँ रह कर उन अन्यो से निरपेक्ष