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जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
इन्द्रियो द्वारा ज्ञेय हैं उनको वादर पुद्गल कहते है। दूसरी अपेक्षा है-स्पर्शता गुण। द्विस्पर्शी, चतु स्पर्शी तथा सूक्ष्म परिणामी अष्टस्पर्शी पुद्गल सूक्ष्म होता है। अवशेप अष्टस्पर्शी पुद्गल स्कन्ध वादर होते है। तीसरी अपेक्षा प्रदेशात्मक है। अप्रदेशी वा एक प्रदेशी, दो, दस यावत् सख्यात प्रदेशी, असख्य प्रदेशी, तथा सूक्ष्मपरिणामी अनन्त प्रदेशी पुद्गल सूक्ष्म कहे जाते है। अनन्तप्रदेशी वादर परिणामी पुद्गल स्कन्ध बादर कहे जाते है। क्षेत्रप्रदेश अवगाहना की अपेक्षा से भी सूक्ष्म वादर भेद कहा जा सकता है। निर्णय चारो अपेक्षा से एक ही होता है।
दो भेद-प्राह्य तया अग्राह्य--पुद्गल जीव के द्वारा ग्रहण किया जाता है तथा परिणमाया भी जा सकता है। लेकिन पुद्गल सब अवस्था में जीव द्वारा ग्राह्य नही है। परमाणु पुद्गल जीव द्वारा ग्राह्य नही है। द्विस्पर्शी, चतु स्पर्शी पुद्गल-स्कन्ध जीव द्वारा अनाह्य है। केवल कितनी ही प्रकार का प्रष्टस्पर्शी पुद्गल स्कन्ध जीव द्वारा ग्राह्य है। इस जीव-प्राहिता अग्राहिता की अपेक्षा से पुद्गल के ग्राह्य तथा अग्राह्य दो भेद कहे गये है।
तीन भेद-(१)प्रयोग परिणत, (२) मिश्र परिणत (३)विनसा परिणत। (१) वे पुद्गल जिनको जीवो ने ग्रहण करके परिणमन
१-तिविहा पोग्गला पण्णत्ता-पयोग परिणया, मिससा परिणया, विससा परिणया।
-भगवती सूत्र ८ . १ : १