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तृतीय अध्याय . पुद्गल के भेद-विभेद
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परमाणु तथा स्कन्ध-परमाणु-परमाणु परस्पर में वन्वन को प्राप्त होकर जिन समवाय या समुदाय को प्राप्त होते हैं, उसे स्कन्द कहते हैं। उपर्युक्त व्यक्तिगत परमाणु तया स्कन्वनामीय परमाणुसमवाय की अपेक्षा ने पुद्गल के दो भेद-परमाणु तथा स्कन्व होते है। इसको सक्षिप्त भेद कहा गया है। समवाय रूप में पुद्गल स्कन्ध है तया भिन्न-भिन्न रूप में परमाणु हैं।
दो भेद-सूक्ष्म तथा बादर-पुद्गल के सूक्ष्म, वादर भेद तीन अपेक्षा से होते हैं यद्यपि फल एक ही होता है। एक अपेक्षा है इन्द्रियो द्वारा शेयता। वे पुद्गल जो इन्द्रियो द्वारा जाने नहीं जा सकते हैं उनको सूक्ष्म पुद्गल कहते हैं। सर्व परमाणु पुद्गल सूक्ष्म ही होते हैं एव इन्द्रियो द्वारा अज्ञेय है। स्कन्यो में भी कितने ही प्रकार के स्कन्वो का संगठन (Construction)ऐसा है कि इन्द्रियो द्वारा वे जाने नहीं जा सकते है । उनको भी सूक्ष्म पुद्गल कहते हैं। वे पुद्गल स्कन्ध जो
१-समस्त पुद्गला एव द्विविधा.-परमाणव. स्कन्वाश्चेति ।
-तत्त्वार्थ सूत्र ५ . २५ की सिद्धिसेन गणि टीका। २-स्कवास्तु वढा एवेतिपरस्पर सहत्या व्यवस्थिता।
तत्त्वार्य सूत्र ५. २५ के भाष्य पर सिद्धिसेन गणि टीका। ३-ते एते पुद्गला समासतो द्विविधा भवन्ति-अणव. स्कन्वाश्च ।
तत्त्वार्य सूत्र ५ . २४ का भाग्य तया ५ • २५ सूत्र । ४-एगत्तण पहत्तेण, खज्या य परमाणु य।
-उत्तराध्ययन ३६ . ११