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जैन पदार्य-विज्ञान में पुद्गल
इन द्रव्यार्य से अनन्त पुद्गलो का कई तरह से भेद करता है। इन अनेक प्रकार के भेदो को मानने में किसी प्रकार से भी परस्पर विरोव या वैषम्य नहीं आता वल्कि पुद्गल के सब भावो का समन्वय ही होता है। आधुनिक प्रत्यक्ष मिद्धवादी विज्ञान भी बहुत दूर तक इन भेदो को मानता है। जैन-दर्शन की तरह अन्य भारतीय या अभारतीय दर्शनी में पुद्गल के भेद-विभेद विस्तार से या कहिये सक्षेप से भी नहीं मिलते। जड पदार्थ (पुद्गल) सम्वन्वी इतना विगद विवरण एव नाना अपेक्षामो से उसकी जानकारी जितनी जैन-दर्शन में मिलती है उतनी अन्य किसी प्राचीन या अर्वाचीन दर्शन में नहीं मिलती। शब्द, आताप आदि को जोजनोद्वारा पुद्गल माने गये थे और अन्य दर्शनो द्वारा अवमानित थे, आधुनिक विज्ञान ने भी पुद्गल (Matter) सिद्ध कर दिया है।
पुद्गल के भेदो का सामान्य विश्लेपण - पुद्गल का एक भेद-व्यक्तिगत भाव से सर्व पुद्गल परमाणु हैं। किसी दूसरे पुद्गल के नाय अवह अवस्था में पुद्गल परमाणु रूप है । अत परमाणु के स्वल्प की अपेक्षा मे पुद्गल का एक ही भेद “परमाणु" होता है। पुद्गल का एकान्त भेद केवल एक परमाणु है। निश्चय नय से सर्व पुद्गल परमाणु हैं।
१-परस्परेणासयुक्ता परमाणव.।
--तत्वार्य सूत्र ५ - २५ के भाष्य पर सिद्धिसेन गणि टीका।