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________________ तृतीय अध्याय पुद्गल के भेद - विभेद ૧ किया है उनको प्रयोग परिणत पुद्गन कहते है । आधुनिक विज्ञान इनको 'Organic Matter' कहना है । (२) वे पुद्गल जो जीव द्वारा परिमित हुए हैं लेकिन अव जीवरहिन होकर या जीव द्वारा निर्जरित होकर वन परिमित हो रहे हैं उनकी मित्र परिणत पुद्गन कहते हैं। जहां पुद्गल में म्यून समय की अपेक्षा ने जीवद्वारा परिणमन तथा स्वकीय परिणमन (Self-transformation or modifications) एक नाथ हो रहे हैं वहाँ पुद्गल में मित्र परिणमन कहा जा सकता है। (३) वे पुद्गल जिनमें स्वकीय अपेक्षा में परिणमन हो रहा है या जिसके परिणमन में किमी जीव का महाय्य नही है उनको विनमा परिणत पुद्गल (11organic matter) कहते हैं । पुद्गल के चार नंद-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु युद्‌गल के परमाणु तया स्कत्व दो नेद बताये गये है | यहाँ स्कन्व के तीन विभेद (कन्व-देश-प्रदेश) करने तथा परमाणु को मिलाकर चार नेट कहे गये हैं । (१) परमाग्री के बद्धसमवाय अर्थात् वन्धन प्राप्त समुदाय को स्वन्ध कहते है । (२) कन्व का वह भाग जो फिर से विभाजित किया जा सके उसको देन कहते हैं। अन हिप्रदेशी से अनन्त प्रदेशी स्वत्व विभाग की देश कहने है । (३) जितने परमाणुओं का वन्व होकर स्कन्य वना हो १ - जे स्त्री ते चरन्त्रिहा पण्णत्ता-खन्ध, खन्वदेमा, खन्धपएसा, परमाणु योग्गला । -भगवती सूत्र २.१० : ६६
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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