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( 61 ) 3 द्र०यनिक्षेप पदार्थ का भूत और भावी पर्यायाश्रित व्यवहार । 4 भावनिक्षेप पदार्य का वर्तमात पर्यायाश्रित व्यवहार ।
जिनभद्रगति क्षमाश्रमण ने निक्षेप की व्याख्या भिन्न प्रकार से भी की है। उनके अतुसार पदार्थ की सज्ञा नाम निक्षेप है । उसका आकार स्थापना निक्षेप है । कारणरू५ पदार्थ द्रव्यनिक्षेप है। कार्यरूप पदार्थ भावनिक्षेप है ।।5 सज्ञाकरण, प्राकृतिकरण, कार-व्यवस्था श्रीर कार्य-व्यवस्था- ये व्यवहार जगत् मे अवतरित वस्तु के न्यूनतम पर्याय हैं । इसीलिए जो वस्तु है वह चतुपायात्मक अवश्य ही होती है 116
नय और निक्षेप
नय अर्थात्मक, ज्ञानात्मक और शब्दात्मक होते है, वैसे ही निक्षेप भी तीनो प्रकार के होते है ।” नय ज्ञान है और निक्षेप व्यवहार है। इनमे विषय और विषयी का सबध है
વિજયી.
વિપય
नामनिक्षेप शब्दात्मक व्यवहार शब्दनय। स्थापनानिक्षेप ज्ञानात्मक व्यवहार सकल्पनाही नैगमनय । द्रव्यनिक्षेप अर्थात्मक व्यवहार नैगम, सग्रह, व्यवहार और
ऋजुसूत्र 18 भावनिक्षेप अर्थात्मक व्यवहार
शब्दनाय । 15 विशेषावश्यकभाष्य, गाया 60 ।
अघवा त्यभिधारण गाम ठपणा य जो सदागारो।
कारणया से द० कज्जाव तय भावी ॥ _16 विशेषावश्यकमाव्य, गाया 73
सामादि भेदसइत्यबुद्धिपरिणाममावतो सियत ।
ज पत्थुमत्यि लोए चतुपज्जाय तय सच ॥ 17 वचनप्रवेश, 74
नयानुगतनिक्षेपपाय भदवेदने ।
विरचच्यार्थवाक्प्रत्ययात्मभेदान् श्रु तापिताम् ॥ ऋजुसूत्र न4 दो प्रकार का होता है शुद्ध और अशुद्ध । शुद्ध ऋजुसूत्र नय प्रत्युत्पन्न पर्याय को ग्रहण करता है। अशुद्ध ऋजुसूत्र नय अनेक क्षणवर्ती व्यजनपर्याय को ग्रहण करता है। अत द्रव्यनिक्षेप इसका विषय बन जाता है ।
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