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( 42 ) है तथा जिस वर्ग और प्राकृति मे है वह उसका स्व-भाव है । स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से घ८ का अस्तित्व है । पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से उसका नास्तित्व है । यह अपेक्षा समन्वय का सूत्र है । जिस अपेक्षा से घट का अस्तित्व है, उस अपेक्षा से ५८ का नास्तित्व नही है। अस्तित्व और नास्तित्व दोनो विरोधी धर्म हैं और दोनो एक द्रव्य मे एक साथ रहते हैं । पर दोनो का कारण एक नही है । अपेक्षा का सूत्र दोनो मे रहे हुए सामजस्य को प्रदर्शित और उनके एक साथ रहने की वास्तविकता को सिद्ध करता है।
आचार्य अकलक ने अस्तित्व और नास्तित्व के विभिन्न कारणो का उल्लेख किया है । स्वात्मा की अपेक्षा पर है, परात्मा की अपेक्षा ५८ नही है इस प्रतिपादन से प्रश्न उपस्थित हुआ कि ५८ का स्वात्मा क्या है और परात्मा क्या है ? उत्तर मे आचार्य ने बताया जिस वस्तु मे घट-बुद्धि और घट-२००६ का व्यवहार हो वह स्वात्मा और उससे भिन्न परामा है । स्वात्मा का उपादान और परात्मा का अपोह इस व्यवस्था से ही वस्तु का वस्तुत्व सिद्ध होता है। यदि स्वात्मा मे 'पट' आदि परात्मा की व्यावृत्ति न हो तो सर्वात्मना भी रूपो मे घट का व्यपदेश किया जाएगा । परात्मा की व्यावृत्ति होने पर भी यदि स्वात्मा का उपादान न हा तो श ग की भाति वह असत् हो जाएगा।
घट-शब्द-वाच्य अनेक घटो मे से विवक्षित घट का जो आकार आदि है वह स्वात्मा है, अन्य परात्मा । यदि अन्य घटो के आकार से भी विवक्षित घटका अस्तित्व हो तो ५८ एक ही हो जाएगा।
विवक्षित घट भी अनेक अवस्था पाला होता है। उसकी मध्यवर्ती अवस्था स्वात्मा है, पूर्व और उत्तरवर्ती अवस्या परात्मा है ।
विवक्षित ५८ की मध्यवर्ती अवस्था मे भी प्रतिक्षा उपचय और अपचय होता रहता है । अत वर्तमान क्षण की अवस्था ही स्वात्मा है और अतीत अनागतकालीन अवस्या परात्मा है । यदि वर्तमान क्षण की भाति अतीत और अनागत क्षणो से भी ५८ का अस्तित्व माना जाए तो सभी घट एक क्षणवर्ती ही हो जायेंगे। अतीत और अनागत की भाति यदि वर्तमान क्षरण से भी ५८ का नास्तित्व माना जाए तो घट का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
वर्तमान क्षणवर्ती घट मे रूप, रस, irrd आकार आदि अनेक गुण और पर्याय होते हैं । ५८ के रूप को श्राख से देखकर उसके अस्तित्व का वोध होता है, अत रू५ स्वात्मा है, रस आदि परात्मा है । यदि चक्षुग्राह्य ५८ मे रू५ की भाति रम आदि भी स्वात्मा हो जाए तो वे भी चाग्राह्य होने के कारण रूपात्मक हो जाएंगे। इस स्थिति मे अन्य इन्द्रियो की कल्पना व्यर्य हो जाती है ।