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एक दिन ऐसा आता है कि मनुष्य मर जाता है और पर्वत भी विनष्ट हो जाता है। किन्तु जिन परमाणो से पर्वत की सरचना हुई थी वे परमाणु कभी विनष्ट नही होगे । जिन परमाणुप्रो से मनुष्य के शरीर की सरचना हुई थी वे परमाणु कभी विनष्ट नहीं होगे । जिस श्रात्मा ने उस शरीर मे प्रार-संचार किया था वह कभी विन नही होगा। नित्यता का प्राधार मूल द्रव्य है । पर्याय क्षणिक हो या दीर्थकालीन, विसदृश हो या सश, अनित्यता को ही प्रस्थापित करता है।
मामान्य और नित्यता का इष्टिकोण या व्याख्या न्यायिक नय है । विशेष और उत्पाद-व्ययात्मक परिशमन का दृष्टिकोण या व्याख्या पर्यायायिक नय है । ये दो मूल नय हैं और परस्पर सापेक्ष है । इनकी सापेक्षता के आधार पर अनेकान्त के 'सामान्य-विशे५ का भेदाभेद' और 'सापेक्ष-नित्यानित्यत्व' ये दो सूत्र प्रस्थापित किए गए।
3 अस्तित्व और नास्तित्व का अविनाभाव
अनेकान्त का तीसरा नियम है अस्तित्व और नास्तित्व का अविनाभाव-- अस्तित्व नास्तित्व का अविनाभावी है और नास्तित्व अस्तित्व का अविनाभावी है । प्लेटो का तर्क था कि कुर्सी का का० कार है इसलिए वह हमारे भार को सहन करती है। उसका का० मृदु है इसलिए उसे कुल्हाड़ी से काटा जा सकता है । कठोरता श्रीर मृदुता दोनो विरोधी धर्म है। विरोधी धर्म एक साथ रह नही सकते, इसलिए कठोरता भी असत्य है, मृदुता भी असत्य है और कुर्सी भी असत्य है। अनेकान्त की पद्धति मे सोचने का यह प्रकार नही है। वहा इस प्रकार सोचा गया कि एक ही द्रव्य मे अनन्त विरोधो का होना अपरिहार्य है । द्रव्य अनन्त धर्मों की समष्टि है । वे धर्म परस्पर विरोधी हैं इसलिए द्रव्य का द्रव्यत्व बना हुआ है। यदि सब धर्म विरोधी होते तो द्रव्य का द्रव्यत्व समाप्त हो जात।। विरोधी धों का होना द्रव्य का स्वभाव है, तब हम उस विरोध की चिन्ता मे उलझ कर द्रव्य के अस्तित्व को नकारने का प्रयत्न क्या करें ? धर्मकीति के शब्दो मे यदिद स्वयमर्थभ्यो रोचते तत्र के वयम्' यदि विरोध स्वयं द्रव्य को रूचिकर है, वहा कौन होते है हम उसकी चिन्ता करने वाले ? हमारी चिन्ता यही हो सकती है कि हम उन विरोधी धर्मो के मूल कारणो और उनके समन्वय सूत्र को खोजें। अनेकान्त ने इसकी खोज की और उसने पाया कि अस्तित्व और नास्तित्व दोनो एक साथ होते हैं । प्रतिषेधशून्य-विधि और विधिशून्य-प्रतिषेध कभी नही होता। विधि भी द्रव्य का धर्म है और प्रतिषेध भी द्रव्य का धर्म है। अस्तित्व विधि है और नास्तित्व प्रतिषेध है । अस्तित्व का कारण है द्रव्य का स्वभाव और नास्तित्व का कारण है द्रव्य का पर-भाव । घट जिस मृत्-द्रव्य से बना वह उसका स्व-द्रव्य है, जिस क्षेत्र मे बना वह उसका स्व-क्षेत्र है, जिस काल मे बना वह उसका स्व-काल