________________
( 40 ) देखा था ? पुराने परमाणु विस्थापित हो रहे है और नए परमाणु स्थापित हो रहे है । हमारे शरीर के भी तदाकार परमाणु विजित हो रहे है और दूसरे परमाणु आ रहे हैं । यदि तदाकार परमाणु विसजित नही होते ता अनुपस्थिति मे फोटो लेने की पद्धति प्राविकृत नहीं होती। परमाणुओ का यह गमनागमन प्रमाणित करता है कि द्रव्य अनित्य है। जब हम उत्तरोत्तर ममान पर्यायो को देखते जाते है तब हमे नित्यता की प्रतीति होती है । जब हम भेदो या विशेषो की ओर ध्यान देते है तब हमे अनित्यता की प्रतीति होती है । इन दोनो स्थितियो मे क्या हम निन्य को सत्य माने या अनित्य को सत्य माने ? यदि नित्य को सत्य मानते हैं तो अनित्य को मिथ्या मानना होगा और यदि अनित्य को सत्य मानते है तो नित्य को असत्य मानना होगा । एक को सत्य और एक को अमत्य मानने वाले परस्पर विवाद कर रहे हैं। एक अनित्यत्व का निरसन कर रहा है तो दूसरा नित्यत्व का निरसन कर रहा है । अनेकान्त किसी एक नय को सत्य नही मानता । હસો અનુસાર અનિત્ય-નિરપેક્ષ-નિત્ય સત્ય નહી હોત ૨ નિત્ય-નિરપેક્ષ-અનિત્ય सत्य नही होता । दोनो सापेक्ष होकर ही सत्य होते हैं ।' प्राचार्य कुन्दकुन्द ने लिखा है कोई भी ऐसा सृजन नही है जहा ध्वस न हो और कोई भी ऐसा वस नही है जहा सृजन न हो। कोई भी ऐसा सृजन और ध्वस नही है जहा स्थिति या ध्रुवता न हो । इन तीनो एजन, वस और स्थिति का समन्वय ही सत्य है । अर्थ-पर्याय क्षणवर्ती पर्याय है । उसके अनुसार यह पर्वत वह नहीं हो सकता जिसे दस वर्ष पहले हमने देखा था। यह मनुष्य वह नही हो सकता जिसे दस वर्ष पहले हमने देखा था। व्यजन-पर्याय दीर्घकालीन पर्याय है । उसके अनुसार यह पर्वत वही है और यह मनुष्य वही है जिसे हमने दस वर्ष पहले देखा था। अर्थ-पर्याय मे सादृश्यवोव नही होता । व्यजन-पर्याय मे सायवोध होता है । सय और साय के आधार पर अनित्यता और नित्यता को फलित करना स्थूल सत्य है, सूक्ष्म मत्य नहीं है । अर्थ-पर्याय मे होने वाला वैसदृश्य और व्यजन-पर्याय मे होने वाला सादृश्य ये दोनो ही पर्याय हैं । इन दोनो से अनित्यता ही फलित होगी। काल की प्रलव शृखला मे
7 विशेषावश्यकभाष्य, गाया 72।
एक विवदति या मिच्छामिणिवेमतो परोप्परतो ।
इदमिह स०पयमय जिमतमरावज्जमच्चत ॥ 8 प्रवचनसा• 100, 101
ण भवो भगविहीणो भगो वा गरिय सभवविहीणो । उप्पादो वि य भगो ण विणा घोर अत्य॥ उपाहिदिभगा विज्जते पज्जएसु पज्जाया । ६०वे हि सति सियद तम्हा दर हपदि स० ॥