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है । जिसमे ये क्षमताए नही होती वह जीव नही होता નિમમે શ્વાન ળા પવન होता है वह जीव होता है । गरीवारी श्रात्मा का जीवत्व हेतु के द्वारा सिद्ध किया जा सकता है । अत हेतु सावित पदार्थो के लिए हेतु का प्रयोग अपेक्षित है ।
श्राचार्य समन्तभद्र ने लिखा है अनाप्त वक्ता की उपस्थिति मे तत्व की सिद्धि हेतु से की जाती है । वह हेतुसाधित तत्व होता है । प्राप्त वक्ता की उपस्थिति मे तत्त्व की सिद्धि उसके वचन से की जाती है । वह श्रागमन्साचित त होता है | 12
ज्ञान का प्रमाणीकरण
दूसरी उपलब्धि है ज्ञान का प्रमाण के रूप मे प्रस्तुतीकरण । श्रार्यरक्षित द्वारा अनुयोगद्वार सूत्र मे किया हुआ प्रसारण-निरूपण न्यायदर्शनावलम्बी होने के कारण जैन न्याय मे प्रतिष्ठित नहीं हो सका । अन्य दार्शनिक प्रमारण की चर्चा प्रस्तुत करते थे, वहा जैन दर्शन मे ज्ञान की प्रतिष्ठा थी । प्रमारणसमर्पित दर्शन गुम मे जब सभी दार्शनिक प्रमाण का विकास कर रहे थे, उन समय समन्वय की दृष्टि से जैन आचार्यों के सामने भी प्रमाण के विकास का प्रश्न उपस्थित हुआ । इस प्रश्न का समावान सर्व प्रथम वाचक उमास्वाति ने किया। उन्होंने ज्ञान और प्रमाण का समन्वय प्रस्तुत किया । यह श्रागमयुगीन ज्ञान-परम्परा और प्रमारणव्यवस्था के बीच समन्वयमेतु बना | सिद्धसेन और कलक ने प्रमाण को स्वतंत्र रूप मे प्रतिष्ठित कर दिया | वाचक उमास्वाति का समन्वय इन सूत्रो मे प्रस्तुत है
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મતિશ્રૃતાધિમનીપર્યંચવજ્ઞાન જ્ઞાનમ્ ।
तत् प्रमाणे ।
आद्य परोक्षम् ।
प्रत्यक्षमन्यत् । 13
मति, श्रुत, अवधि, मन पर्यंव और केवल ये पाच ज्ञान हैं ।
ये ज्ञान ही प्रमाण हैं ।
मति और श्रुत ये दो ज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं ।
अवधि, मन पर्यंव और केवल ये तीन ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।
आप्तमीमासा, 78
वक्तर्यनाप्ते
यद्धतो, साच्य तद्धेतुसावितम् ।
પ્રાપ્તે વક્ત્તરિ નવાચાર્સાવ્યમાનમસાધિતન
तत्त्वार्य, 1/9-12