________________
( 21 ) पक्ष मे पागम का प्रयोग करने वाला तत्व का सम्यक व्याख्याता नही होता 18 बारामग्रन्यो मे केवलजानी के वचन सकलित होते हैं। उनमे प्राय अतीन्द्रिय अर्थ निरूपित होते हैं। वे हेतु या तर्क से अतीत होते है। इसलिए उनमे हेतु का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इन्द्रियगम्य वि५५ हेतु के द्वारा समझे जा सकते है अत उनकी सिद्धि हेतु के द्वारा की जानी चाहिए। उनकी सिद्धि के लिए आगम का प्रयोग करना उपयुक्त नहीं होता। अहेतुगम्य पदार्थ
शरीरमुक्त आत्मा अतीन्द्रिय है। उसकी सिद्धि के लिए कोई तर्क नहीं है। मति उसे ग्रहण नही कर पाती । भृगुपुत्रो ने अपने पिता से कहा आत्मा अमूत है, अत वह इन्द्रियो के द्वारा नही जाना जा सकता वनस्पति के जीव वास लेते हैं। उनमे श्राहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध मान, माया, लोभ ये सारी सजाए होती हैं । हर्ष और शोक होता है। पृथ्वी काय के जीवो मे उन्माद होता है। ये अतीन्द्रिय विषय हैं । हेतु के द्वारा इन्हे प्रमाणित नहीं किया जा सकता । अमूत तत्व, सूक्ष्म मूत तत्व और सूक्ष्म पर्याय ये सब बागम के प्रामाण्य से ही सिद्ध हो सकते है । अतीन्द्रिय पदार्य भागम-साधित पदार्थ होते है । हेतुगम्य पदार्थ
शरीरयुक्त जीव हेतु के द्वारा सिद्ध किया जा सकता है । जिसमे सजातीय से उत्पन्न होने और सजातीय को उत्पन्न करने की क्षमता होती है वह जीव होता 8 सन्मति प्रकरण, 3/43-45
दुविही धम्मावाश्री अहेउवाश्री य हेउवायो य । तत्थ उ अहेउवाश्रो भवियाऽभवियादी भावा । भविश्री सम्म६ सण-पाण-चरित्तपडिवत्तिसपनो । सियमा दुखतकडो ति लक्खरण हेउवायरस ।। जो हेउवायपसम्मि हेऽश्रो भागमे य श्रागमिश्री ।
सो ससमयपण्णवो सिद्ध तविराही अनो।। 9 धवला, 6/1/9/6
आगमी हि गाम केवलणाणपुरस्सरो पायेण ।
શ્રાવિયત્યવસો ઐતિયસામો નુત્તિમોયરાવીયો 10 प्राया, 5/124,125
तक्का तत्य रण विज्ज ।
मई तत्य रण गहिया । 11 उत्तरयणागि, 14/19
नो इदियगेज्झ अमुत्तभावा ।