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तर्क
दर्शन
વપૂર્વો
दुर्नय
दृष्टान्त
મૈં તવાવ
ધર્મગ
धर्मास्तिकाय
वारणा
નય
नैगम
मनह
વ્યવહાર
은얻었다
–
समभिरुद
एवभूत
( 166 J
- श्रन्वय और व्यतिरेक का निर्णय |
मत्ता मात्र का बोध, निर्विकल्प वोच ।
जाननय
- दगपूर्वी (शास्त्रो) का ज्ञाता |
अपने अभिप्रेत वस्तुधर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मो का निराकरण करनेवाला विचार-विकल्प |
--व्याप्ति का प्रतीति-स्थल | साव्य के समान किसी ग्रन्य प्रदेश का निदेश करना | इसके दो भेद हैं अन्वयी दृष्टान्त और व्यतिरेकी दृष्टान्त
- दो तत्त्वो ( चेतन और अचेतन ) की स्वतंत्र स्वीकृत करने वाला सिद्धान्त ।
वेदो के आवार पर वर्म को जानने वाला |
लोकव्यापी गति महायक द्रव्य |
निर्णयात्मक ज्ञान की अवस्थिति, मस्कार या वामना ।
अनन्त धर्मात्मक वस्तुके विवक्षित
का ग्रहण तथा शेष श्री का निराकरण न करने वाला प्रतिपादक का अभिप्राय, वस्तु के एक धर्म को जानने वाला जाता का अभिप्राय | नय सात हैं
- प्रभेद या भेद दोनो को ग्रहण करने वाला अभिप्राय ।
- मामान्यग्राही विचार 1 इसके दो भेद हैं-पर और अपर ।
लोकप्रसिद्ध अर्थ का प्रतिपादन करने वाला विचार | जैसे भरें मे पाँचो वर्ण होते है, फिर भी उसे काला कहा
जाता है ।
वर्तमान पर्यायग्राही विचा
काल, मख्या, लिंग आदि के भेद में श्रर्यभेद स्वीकार करनेवाला विचार ।
मत्ता को
पर्यायवाची शब्दो मे नितभेद से अर्थभेद स्वीकार करने वाला विचार |
विभिन्न अपेक्षाओ से नयो के भेद
क्रिया की परिणति के अनुरूप शब्दप्रयोग को स्वीकार करनेवाला विचार
- ज्ञानप्रवान नय |