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साकार
अनाकार
उपादान
एकान्त
सम्यक्"एकान्त
मिथ्या एकान्त
एकात्मवाद
પેતિદ્ય
क्रियमारणकृत
कूटस्यनित्यवाद
क्षणिकवाद
गुण
ज्ञान
મતિજ્ઞાન
श्रुतज्ञान
અધિજ્ઞાન
મન પર્યવજ્ઞાન
केवलज्ञान
નાનાન્તરવેદ્ય
चिन्ता
નેતના
ત—િ
उपयोग
छद्मस्य
जातिस्मृति
( 165 )
सविकल्प चेतना की प्रवृत्ति ज्ञान ।
निर्विकल्प चेतना की प्रवृत्ति - दर्शन ।
मूल कारण ।
अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म का निश्चय ।
નયષ્ટિ |
दुर्नय |
एक सर्वव्यापी श्रात्मा की स्वीकृति ।
- पौराणिको द्वारा सम्मत एक प्रमाण ।
- देखें - प्रकरण चौथा ।
आत्मा को सर्वथा अपरिवर्तनीय मानने वाला सिद्धान्त ।
-सव द्रव्यो को क्षरणवर्ती स्वीकृत करनेवाला बोद्ध सिद्धान्त ।
- वस्तु का सहभावी धर्म ।
इन्द्रिय र मन से होनेवाला ज्ञान ।
- वाच्य वाचक संबंध की योजना से होनेवाला मानसिक
ज्ञान ।
- श्रतीन्द्रिय ज्ञान का एक प्रकार । मूर्त द्रव्यो को साक्षात् जानने वाला ज्ञान |
- प्रतीन्द्रिय ज्ञान का एक प्रकार | मन का साक्षात् ज्ञान । - अतीन्द्रिय ज्ञान का एक प्रकार । सर्वथा अनावृत ज्ञान, कोरा ज्ञान, निरुपाधिक ज्ञान ।
उत्तरवर्ती ज्ञान के द्वारा पूर्ववर्ती ज्ञान को जानना, ज्ञान का स्व- सवेदी न होना ।
नियमो का निर्णायक - वोध, तर्क या अह् ।
- श्रात्मा का एक गुण । इसी गुरण के द्वारा जीव की प्रजीव मे स्वतन्त्र सत्ता स्थापित होती है ।
जय को जानने की क्षमता ।
- ज य को जानने की प्रवृत्ति ।
- वह पुरुष जिसका ज्ञान पूर्णत निरावृत नही होता । पूर्वजन्मों का ज्ञान |