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शब्दनय
नास्तित्व
क्रियानय -क्रियाप्रधान नय। द्रव्यायिकनय --सामान्य या अभेदग्राही दृष्टिकोण या व्याख्या । प्रथम
नय द्रव्यायिक हैं। पर्यायायिक नय विशेष या भेदग्राही विचार । शे५ पार नय पर्यायाथिक है । अर्थनय - अर्थाश्रयी दृष्टिकोण। प्रथम चार नय नैगम, सग्रह,
व्यवहार और ऋजुसूत्र-ये अर्यनय हैं। उनमें शब्द का काल, लिग, निरुक्त आदि के आधार पर अर्य नहीं वदलता। - सदाश्रयी दृष्टिकोण । शेप तीन नय शब्द, समभिरूढ और
एवभूत ये शब्दनाय हैं। इनमें शब्दो का काल, लिंग,
निeth आदि के आधार पर अर्थ बदल जाता है। निश्चयनय ताविक अर्थ को स्वीकार करने वाला विचार । जैसे-भौरा
काला है क्योकि उसका शरीर एक स्थूल स्कंध है ।
वस्तु का प्रतिषेधात्मक धर्म । निक्षेप
प्रस्तुत अर्थ को जानने का उपाय, विशिष्ट आन्द-प्रयोग
की पद्धति । नाम निक्षेप ~पदार्थ का नामात्मक व्यवहार । स्थापनानिक्षेप -पदार्य का श्राका राश्रित व्यवहार । द्रव्यनिक्षेप -पदार्थ का भूत-भावी पर्यायाश्रित व्यवहार ।
भावनिक्षेप -पदार्थ का वर्तमान पर्यायाश्रित व्यवहार । નિયમન
माध्य धर्म का वर्मा मे उपसंहार करना । नित्यानित्यवाद સમી દ્રવ્યો જે નિત્ય બોર અનિત્ય સ્વીત કરને વાના
सिद्धान्त । नियुक्तिकार - जन प्रागमो की प्राचीन व्याख्या को नियुक्ति कहा जाता
है। ये प्राकृत भाषा की पद्यमय रचनाए है । आचार्य भद्रबाहु द्वितीय (वि पहली शती) नियुक्तिकार के रूप मे
मान्य हैं। निर्विकल्पज्ञान अनाकार उपयोग या दर्शन । नंगमाभास
एकान्त सामान्य या एकान्त विशे५ का पक्षपाती
दृष्टिकोण। नो-केवलज्ञान
~ अवधिज्ञान और मन पर्यवसान ।