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( 153 ) 23. नरचन्द्रसूरी {ई 13 वी)
ये देवप्रभसूरी के शिष्य थे । उन्होने न्यायकदली पर टीका लिखी। 24 पात्रकेसरी (ई० 5-6 शताब्दी)
इनका जन्म ब्राह्मण कुल मे हुआ था। ये अहिच्छत्र नगर के राजपुरोहित ये। ममन्तभद्र द्वारा रचित देवागमस्तोत्र सुनकर ये जैन मुनि वने । ये न्यायशास्त्र के पारगत विद्वान थे । इनका न्याय-विषयक ग्रन्थ है विलक्षणकदर्थन बौद्ध श्राचार्यों द्वारा निरपित हेतु के लक्षणों का खडन करने वाला ग्रन्थ । यह अभी उपलब्ध नही है। 25 प्रधु मनसूरी (ई० 12 वी)
इनके गिप्य 'चन्द्रमैन' थे। इन्होने 'वादस्यल' नाम का ग्रन्थ रचा। 26 प्रमाचन्द्र (ई० 980-1065)
इनके गुरु गोल्लाचार्य के शिष्य पद्मनन्दि सैद्धान्तिक थे। इनका कार्यक्षेत्र धारानगरी तथा उसके ग्रामपास का क्षेत्र रहा है । ये मूल सघ के अन्तर्गत नन्दिगरण की प्राचार्य-परम्परा मे हुए थे। ये धारानगरी के राजा भोज के मान्य विद्वान थे। इनके मवर्मा श्रीकुलभूपण मुनि थे। इन्होने स्वतन्त्र रूप से भी अनेक ग्रन्थो की रचना की तथा अनेक ग्रन्यो पर व्याख्याए लिखी। गद्यकथाको। इनकी स्वतन्त्र रचना है । व्याख्या ग्रन्यो मे मुख्य ये है
1 प्रमेयकमलमार्तण्ड आचार्य माणिक्यनन्दि कृत परीक्षामुख की व्याख्या । 2 न्यायकुमुदचन्द्र ---प्राचार्य अकलक के लधीयस्त्रय की व्याख्या। इसमे
प्रमाण विषयो के साथ प्रमेय विषयो की चर्चा है । 3 तत्वार्थवृत्तिपदविवरण सार्थमिद्धि की व्याख्या । 4 शाकटायन न्यास शाकटायन व्याकरण की व्याख्या। 5 गाम्भोजभास्कर-जैनेन्द्र व्याकरण का महान्यास । 6 प्रवचनसारस रोजभास्कर कुन्दकुन्द के प्रवचनसार की टीका ।
विद्वानो की मान्यता है कि प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र जैन न्याय के श्राक र अन्य है और जनदर्शन के मध्ययुगीन अन्यो मे अपना विशिष्ट स्थान रखते है । यद्यपि ये व्यास्याए है, फिर भी प्राचार्य प्रभाचन्द्र की बहुश्रु तता पग-पग पर मुखर हुई है और ये ग्रन्थ उत्तरकालीन न्याय विषयक ग्रन्यो के लिए आधारभूत बने हैं।
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न्यायकुमुदचन्द्र, भाग 2, प्रस्तावना पृ० 58 ।