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( 154 ) ___ 27 मापसेन ( 1 2-1 3 जी)
ये सनगण के श्राचाय थे । इन्हे 'विध यो उाविमाप्त थी ! इनके तीन __अन्य प्रकाशित हैं उनमे दो ग्रन्थ न्याय-विषयक हैं _1 विश्वतत्वप्रकाश विभिन्न दर्शनो के मतव्यो का जनदृष्टि से
परीक्षण। 2 प्रमाप्रमेय--- जनदृष्टि से प्रमाणो की व्याख्या ।
अप्रकाशित अन्यो मे न्याय के अन्य ये हैं
न्यायदीपिका, न्यायसूर्यावली । 28 मल्लवादी (ई० 4-5 आती)
ये सीट मे वलभीपुर के निवासी थे । इनकी माता का नाम दुर्लभदेवी था । इन्होंने अपने मातुल प्राचार्य जिनानन्द से दीक्षा ली। वे बहुत बड़े ताकिक थे । एक वार वे बौद्ध प्राचार्य से पराजित हो गए। इसके फलस्वरूप राजा शिलादित्य ने जन मुनियो को अपने गज्य से निर्वासित कर दिया। यह वात मल्लवादी को बहुत अप्रिय लगी। वे तर्कशास्त्र के गहन अध्ययन मे दत्तचित्त हुए और राजा शिलादित्य के दवार मे वौद्ध आचार्यो को पराजित किया। उन्होने 'दादगारनयचक्र' की रचना की, किन्तु वह आज मूलरूप मे उपलब्ध नहीं है । मिहमूरी द्वारा लिखित टीका के आधार पर उसका पुनरुद्धार करने का प्रयत्न हृया है। 29 मल्लवादी (ई० 700-750)
इन्होंने धर्मकीति के न्यायविन्दु ५२ धर्मातर की टीका पर टिप्पन लिखा जो अभी तक अमुद्रित है। 30 मल्लिपेरण (ई० 14 वी)
ये नागेन्द्रगधीय उदयप्रमभूरी के शिष्य थे। इन्होने जिनप्रभसूरी की महायता से 'भ्यावादमजरी' ग्रन्य का निर्माण किया । वह हमचन्द्र द्वारा चित अन्ययोगव्यवच्छेदिका की टीका है । उपाध्याय यशोविजयजी ने स्याद्वादमजी पर स्यादवादमजूपा नाम की वृत्ति लिखी है । 31 मासिक्यनन्दि (ई० 993-1053)
नन्दिमघ देशीयगर गुर्वावली के अनुसार ये काल्ययोगी के शिष्य थे और प्रमाचन्द्र के गुर । 'परीक्षामुख' इनकी प्रमुखकृति है। इस पर उनके विद्वान् शिप्य प्रभाचन्द्र ने 'प्रम कमलमानण्ड' नाम की टीका लिवी।
परीक्षामुक ग्रन्थ ५. प्राचार्य शुभचन्द्रदेव ने-- 'परीक्षामुखवृत्ति' तथा यात्राय जातिवणों ने 'प्रमेयकठिका' नाम की टीका लिखी।