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( 152 ) उल्लेख प्राप्त होता है कि पूज्यपाद के गिप्य वजनन्दि ने वि०म० 526 में दक्षिण मथुरा (मदुरा) मे द्राविट मघ की स्थापना की थी। देवनन्दि कुन्दकुन्द ग्राम्नाय के देशीयगण के प्राचार्य चन्द्रनन्दि के शिष्य या प्रथिए । । इन मुन्य ग्रन्थ ये है । जनेन्द्र न्याय
नवर्थिमिति तत्वार्यसूत्र प. उन पर ती टीका । 3 ममाबितत्र। 4 दावतार -पाणिनि व्यक्ति ५९ न्याम ।
5 जनेन्द्र न्याम जनेन्द्र प्याक पर वापज न्याम । १६ देवप्रभसूरी (ई० 12-13 वी)
ये मलबा हेमचन्द्र के प्रभिप्य श्रीचन्द्रसूरी के शिष्य थे। इन्होंने 'न्याया4तार टिप्पण' लिया। २० देवभद्र (ई० 11-12)
ये नवागी टीकाकार अमयदेव के शिम अमनचन्द्र के शिष्य थे। इनका पहला नाम गुणचन्द्र गसी या । इन्होने अनेक प्रन्यो की रचना की। कगा- पर 'प्रमाणप्रकाश नामक अन्य भी लिखा । २१ देवसेन (ई० 10)
इनके गुरु का नाम श्री विमनसेन गावर था । ऐसा माना जाता है कि ये आचार्य कुन्दकुन्द के अन्य के प्राचार्य थे। इन्होने बारा नगरी मे पानाय के मन्दिर मे वि० स 990 माघ शुक्ला दशवी को दर्शनमार नामक अन्य की रचना की। २२ धर्मभूषण (ई 14-15)
ये नन्दिसघ के प्राचार्य थे। इन्होने 'न्यायदीपिका' और 'प्रमाणविस्तार'ये दो न्यायविषयक अन्य लिखे ।
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भावसग्रह, 701 मिरिविमल सागहरमिस्मो,
खामेण देवसेपो ति। दर्शनमार, 49,50 पुवायरियकवाड गाहाइ मचिजण एयत्य ।
सिरिदेवसेगसिया धाराए मवसरण ॥
श्री दस सारो हारो भवाय नवमए नए । मिरिपासणाहगेहे सुविसुद्ध माहमुदसमीए ।