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________________ ( 151 ) १२. ज्ञानचन्द्र (ई० 14-15 वी) ये साधुपूर्णिमा (सार्धपूर्णिमा) गच्छ के आचार्य गुणचन्द्र के शिष्य थे । ये राजशेख र के समकालीन थे । इन्होने रत्नाकरावतारिका पर टिप्पन लिखा। १३. चन्द्रसेन (ई० 12-13 वी) ये प्रद्युम्नसूरी के शिष्य थे । इन्होने वि० 1207 मे 'उत्पाद सिद्धि' नाम के ग्रन्थ की रचना की। १४ जिनदत्तसूरी (ई० 13 वी) ये वायडाच्छ के जीवदेवसूरी के शिष्य थे। इन्होने विवेकविलास' की पना की । इसके अष्टम उल्लास मे पडदर्शनविचार' नाम का प्रकरण है। १५ जिनपतिसूरी (ई० 13 वी) ये 'प्रबोववादस्यल के करता है। १६ जिनमद्राणी क्षमाश्रमण (ई० 6-7) ये बहुश्रत विद्वान थे। उनका प्रमुख अन्य है- विशेषावश्यक भाष्य । इसमे आगमिक विषयो की गभीर ची तया यथाप्रसग मतातरो की चर्चा भी प्राप्त है। इसमे तर्कशास्त्र के विभिन्न अगो पर स्वतन्त्र विचार मिलते है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने इन्हे व्याख्यातायो मे अग्रणी माना है। १७ जिनेश्वरसूरी (ई० 12-13 वी) धारा नगरी मे एक धनाढ्य पेठ रहता था। उसका नाम या लक्ष्मीपति । उसके पास मध्यप्रदेश का एक ब्राह्मण रहता था। उसके दो पुत्र थे- श्रीधर और श्रीपति । दोनो प्राचार्य वर्वमानसूरी के पास दीक्षित हुए । - उनका नाम जिनेश्वर और बुद्धिसागर रखा गया। आगे चलकर जिनेश्व रसूरी ने खरतरगच्छ की स्थापना की। उन्होने जाबालपुर मे रहते हुए अनेक अन्य रचे । उनमे मुख्य है-- पलिंगीप्रकरण, हरिभद्राष्टकटीका, प्रमालक्ष्म सटीक । १८ देवनन्दि (पूज्यपाद) (ई० 5 6) इनका समय विक्रम की छठी शताब्दी के पूर्वाद्ध माना जाता है। वि० की दसवी शताब्दी के उत्तरार्द्ध (990) मे लिखे गए दर्शनमार अन्य मे यह 2 यह सरस्वती अन्यमाला कार्यालय, प्रागरा से वि० 1976 मे प्रकाशित हो चुका है।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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