________________
( 117 )
व्याप्ति जनो ने निश्चित की, उसके प्रतिकार मे बौद्ध कहते हैं-'जनवादी ने साध्य के द्वारा व्याप्त अथवा अन्याप्त मृत्यु का विवेक किए बिना मृत्युमात्र को हेतु कहा है । वादी ने हेतुभूत मरण को नहीं समझा और इस अज्ञान के कारण उसके लिए शुष्कतारूप म२६॥ वृक्षो मे दीखने के कारण सिद्ध है । प्रतिवादी को पता होने के कारण प्रसिद्ध है । यदि वादी को भी पता होगा तो उसके लिए भी प्रसिद्ध होगा, यह नियम से कहा जा सकता है।
जैन ताकिक मानते हैं कि 'वृक्ष चेतन है', इसका शान बौद्धो को होता तो उक्त हेतु प्रसिद्ध नही होता । इसलिए वे कहते हैं-'वृक्ष अचेतन हैं, क्योकि उनका विज्ञान, इन्द्रिय और आयु की समाप्तिरू५ मरण नही होता । यह हेतु वादी बौद्ध के लिए सिद्ध है, किन्तु प्रतिवादी जन के लिए प्रसिद्ध है ।
अविनाभाव के नियम बहुत विवादास्पद रहे है। प्राकृतिक तथ्यो मे सबद्ध व्याप्तिया भी भिन्न-भिन्न रही हैं। उनमें से एक का उल्लेख उपर किय गया है। संद्धान्तिक विपयो से संबद्ध व्याप्तिया वहत ही भिन्न हैं। जिस दर्शन का जो सिद्धान्त रहा, उसने उसीके श्राधार पर व्याप्ति का निर्माण किया, जैसे -- 1 जैन परिणाम नित्यत्ववादी हैं। इस परिणामि-नित्यता के आधार
पर उन्होंने एक व्याप्ति निश्चित की- जो सत् है वह उत्पाद,
व्यय, ध्रौव्ययुक्त है अर्थात् एक साथ नित्य और अनित्य दोना है। 2 वीरो ने क्षणिकवाद के आधार पर यह व्याप्ति निश्चित की जो
सत् है वह क्षणिक है अर्थात् सत् केवल अनित्य है । 3 नैयायिक, वैशेषिक दर्शन कुछ द्रव्यो को नित्य मानते हैं और कुछ को
अनित्य मानते हैं । इसलिए सत् के विषय में उनकी न्याप्ति भिन्न प्रकार की होगी।
इन उदाहरणो से समझा जा सकता है कि अविनाभाव के नियम-निर्धारण के प्राधार (सहभाव और क्रममाव) के विषय मे सब की समिति समान होने पर भी उनके फलित समान नहीं हैं। इसका कारण यही प्रतीत होता है कि सूक्ष्म सत्यो के विषय मे सबक सिद्धान्त समान नही हैं । यह सैद्धान्तिक असमानता ही अविनाभाव के नियमो मे विभिन्नता लाती है।
___ यह हो सकता है कि नए रहस्यो के उद्घाटन के पश्चात् सर्वसम्मत व्याप्तिया भी बदल जाए, अविनाभाव के नियम खडित हो जाए ।
1 न्यायबिन्दु (गोविन्दचन्द्र पाण्डे कृत अनुवाद) पृ०० 85 ।