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( 116 ) सामान्य विषयक सूत्रो को खोजना और उनमे अनिवार्यता का पता लगाना बहुत कठिन है । कालिकता का प्रश्न और भी टेढा है। अविनाभाव तब बनता है जब
कालिक अव्यभिचार हो किसी भी देश-काल मे उसका अपवाद न हो । वर्तमान मे साहचर्य के अव्यभिचार को जाना जा सकता है । स्मृति की परिधि मे रहे हुए अतीत मे भी जाना जा सकता है। किन्तु स्मृति की परिधि से मुक्त अतीत मे और अनन्त भविष्य मे साहचर्य का नियम नही ही बदलेगा- इसका नियमन को किया जा सकता है ? इसलिए अविनाभाव के नियम के साथ जुडी हुई कालिकना की शर्त अवश्य ही परीक्षा की कसौटी ५२ कमने योग्य है । हम नियम की सरचना उपलब्ध नान-सामग्री के आधार पर करते हैं। अनुपलव्य जान उपलब्ध ज्ञान से बहुत विशाल है, फिर हम अविनाभाव के नियम को निरपेक्ष का मान सकते हैं ? अविनाभाव का नियम उपलब्ध जान-सापेक्ष ही होना चाहिए । जन ताकिको ने भी अविनाभाव के नियम का कालिक आधार माना है । ५२ निरन्तर विकासमान जान और अनुपलब्धि से उपलब्धि की ओर बढ़ते हुए मानवीय जान-विजान के चरण यह सोचने के लिए बाध्य करते हैं कि व्याप्ति के पीछे जुडा हुआ कालिकता का विशेषण निरपेक्ष नही हो सकता।
मैं देख रहा हूँ कि वजानिक तथ्यों के उद्घाटित हो जाने पर अनेक व्याप्तिया खण्डित हो चुकी हैं । यह नहीं कहा जा सकता कि सारी व्याप्तिया सही ही हैं । जिस काल मे व्याप्तिया निश्चित की गई, अविनाभाव के नियम निर्धारित किए गए, उस समय उन्हे कालिक सत्य समझा गया था। किन्तु उत्तर काल मे उनकी सत्यता वैसी ही रहती है, यह कहना सभव नहीं है । व्याप्ति के निर्माण मे हमारा प्रत्यक्ष ही काम करता है। बार-बार निरीक्षण के द्वारा जब हम एक ही तथ्य की पुनरावृत्ति देखते हैं तब एक व्याप्ति बना लेते है इसके होने पर यह होगा और इसके न होने पर यह नही होगा।
व्याप्ति वादी और प्रतिवादी दोनो पक्षो द्वारा मान्य होनी चाहिए-यह सिद्धान्त सर्वमान्य रहा है । जिसकी व्याप्ति प्रमाण से निश्चित नहीं होती उसे हेतु नही माना जाता, किन्तु असिद्धहेत्वाभास माना जाता है । शब्द परिणामी है, क्योकि चाक्षुप है । यह चाक्षुषत्व हेतुवादी और प्रतिवादी दोनो के लिए प्रसिद्ध है । शब्द की व्याप्ति चक्षु के साथ नही है, इसलिए शब्द का चाक्षुष होना सिद्ध नही है। 'वृक्ष चेतन हैं, क्योंकि वे सोते हैं ।' अथवा 'वृक्ष चेतन हैं, क्योकि सब छाल के निकलने पर वे मर जाते हैं ये हेतु प्रतिवादी पौर के लिए प्रसिद्ध है । वे मानते हैं कि पक्षभूत वृक्षो का पत्तों के मिकुडने से लक्षित सोना अशत सिद्ध नही है, क्योकि सब वृक्ष गत मे पत्त नही मिकोडते, किन्तु कुछ वृक्ष ही ऐसा करते हैं । वौद्ध विनान, इन्द्रिय और श्रायु के निरोध को ही मृत्यु का लक्षण मानते हैं और वह (मृत्यु) वृक्षो मे सभव नहीं है । सपूर्ण चाल के निकालने की मरने के साथ जो