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के बिना नही हो सकता, इसलिए कार्य का कारण के साथ अविनाभाव सम्बन्ध है । कार्य कारण के बिना भी होता है, इसलिए कारण का कार्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध नहीं है । कारण का कार्य के साथ अविनाभाव नहीं है, इसीलिए कारण हेतु नही बन सकता।
कारणहेतु के समर्थन मे जैन परम्परा का तर्क यह है प्रत्येक कारण हेतु नही होता। किन्तु वह कारण हेतु अवश्य होता है जिसकी शक्ति प्रतिबन्धक तत्वो से प्रतिबन्धित न हो और जिसकी सहकारी सामग्री विद्यमान हो । अप्रतिबधित शक्ति और सहकारी सामग्री से युक्त कारण कार्य को अवश्य उत्पन्न करता है, इसलिए इस प्रकार के कारण का कार्य के साथ अविनामाव होता है । अधेरी रात मे प्राम चूसने वाला व्यक्ति रस को उत्पन्न करने वाली सामग्री का अनुमान करता है । जो रस चूसा जा रहा है वह कार्य है । वह पूर्वक्षणवर्ती रस और रू५ के द्वारा उत्पन्न हुआ है, इसलिए वह उत्तरक्षणवर्ती रस-विज्ञान का कारण है। यह कार्य से कारण का अनुमान है। श्राम चूसने वाला उस पूर्वक्षणवर्ती रूप से वर्तमान क्षणवर्ती रूप का अनुमान करता है। यह कारण से कार्य का अनुमान है । बौद्धमतानुसार पूर्वक्षणवर्ती रस, रूप आदि मिलकर ही उत्तरक्षणवर्ती रस उत्पन्न करते हैं । पूर्वक्षणवर्ती रस उत्तरक्षणवर्ती रस का उपादान कारण होता है और रूप सहकारी कारण । इस प्रकार पूर्वक्षणवर्ती रूप से जो उत्तरक्षणवर्ती रूप का अनुमान किया जाता है वह कारण से कार्य का अनुमान है। अविनामाच (व्याप्ति) को जानने का उपाय
अविनाभाव के लिए अकालिक अनिवार्यता अपेक्षित है। अनिवार्यता की कालिकता का बोध हुए विना अविनाभाव का नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता । नयायिक मानते हैं कि भूयो दर्शन से अविनामाव का वोध होता है । पार-बार दो वस्तुओ का साहचर्य देखते हैं तव उस साहचर्य के आधार पर नियम का निर्धारण कर लेते हैं : नियम का आधार केवल साहचर्य ही नहीं होता, किन्तु व्यभिचार (अपवाद) का अभाव भी होना चाहिए । इस प्रकार व्याप्तिमान के लिए दो विषयो का शान आवश्यक है साहचर्य का ज्ञान तथा व्यभिचारमान का अभाव । घूम के साथ अग्नि का साहचर्य है और धूम के साथ अग्नि का व्यभिचार कही भी प्राप्त नहीं है, अत अव्यभिचारी साहचर्य-सम्बन्ध के शान से व्याप्ति का वोध होता है।
डानिन तथा उसके अनुगामी विकासवादी शानिको ने माना है कि यद्यपि प्रकृति नियमबद्ध चलती है, फिर भी कभी-कभी और कही-कही उत्प्लवन भी होता है, छला। भी होती है । इस प्लुतसचारवाद के अनुसार सामान्य नियम का अतिक्रमण भी होता है । हम इन्द्रियनान के द्वारा विशेषो को जान लेने हैं, पर विशेषो मे