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( 118 ) भीमासप्रवर कुमारिल ने लिया है
'यनाप्यतिशयो दृप्ट म स्वार्यानतिलधनान् ।
दूरसूक्ष्मादि टी स्थान, न रूपे श्रोनवृत्तिता ।। ‘जहा विशेषता दिखाई देती है, वह उनकी मीमा में ही होती है । सीमा का अतिक्रमण कर वह नहीं होती । देखने मे प्राय की पटुता का प्रति जय हो सकता है-दूरस्थ और सूक्ष्म वस्तु को देखा जा सकता है। किन्तु इस पटुता का विकास यहा तक नही हो सकता कि श्राव सुनने भी लग जाए ।
जब मैंने यह श्लोक पढा तब मेरे मन मे प्रश्न उठा कि यह निरपण जनसम्मत नहीं है । जन मानते हैं कि 'सभिन्नयोतोपलब्धि' का विकास होने ५२ .न्द्रियो की प्रतिनियतार्याहिता समाप्त हो जाती है। फिर किसी भी न्द्रिय मे किनी भी इन्द्रिय का काम लिया जा सकता है, पाव से देखा भी जा सकता है, मुना भी जा सकता है और स्पर्शवोध भी किया जा सकता है। वर्तमान का विमान भी इस सत्य की पुष्टि करता है कि शरीर विमान के अनुसार शरीर के मव कोप एक जैसे है । कुछ कोपो ने विशेषज्ञता प्राप्त करली है । यदि प्रशिक्षित की जाए तो श्राव की चमडी भी देख सकती है । कान की हडियो की तुलना मे दात ध्वनि का अपेक्षाकृत अच्छा वाहक है । एक उपकरण को दातो मे फिट कर उनसे कान का काम लिया जा सकता है । इन वजानिक उपलब्धियों के पश्चात् 'जो श्रोनगाह्य है वह गद है' इस व्याप्ति को बदलना पडेगा । उसके दतग्राह्य होने पर श्रीजग्राह्यता का નિયમ સાર્વમમ ન હતા ! મૈને તત્ત્વાયંત્ર ી, સિદ્ધસેના િત માવ્યાનુસાર टीका मे पढ़। 'गुलियो से पढा जा सकता है।' उस पर मुझे आश्चर्य हुआ। कुछ समय पूर्व वजानिक पत्रिकामी मे पढ़ा कि रूस मे एक लडकी अगुलियो से पढ़ लेती है । फास मे एक लड़की अशुलियो से २॥ पहिचान लेती है । यह कोई जादूटोना या मजाक्ति नही है । उनकी अगुलियो के ज्ञान तन्तु इतने विकसित हो गए कि वे आख का काम दे सकते हैं । हमारे शरीर के हर हिस्से मे पैतन्य है । उसे विकसित कर लेने ५२ गरीर का प्रत्येक भाग वाह्य विपयो को जान सकता है।
एक व्याप्ति है - जो भारी है वह नीचे जाता है, जैसे वृक्ष का सयोग टूट जाने पर फल, भारी होने के कारण, नीचे गिरता है । 'जहाँ-जहा गुरुत्व है, वहापहा अधोगमन है' इस प्राचीन व्याप्ति का, न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण (Theory of Gravitation) और श्राइस्टीन के आकाशीय 4ता (Curvation of Space) के सिद्धान्त के पश्चात्, स्वरूप बदल जाता है। भारी वस्तु नीचे जाती है और हल्की वस्तु ऊपर जाती है-यह सिद्धान्त वजन के आधार पर बना हुआ है । न्यूटन ने यह स्थापित किया कि दो जड वस्तुओं के द्रव्यमान (Mass) और उनके बीच की
2 २लोकवात्तिक, सूत्र 2, २लो० 114 ।