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________________ ( 110 ) 13 भाव परिणति का प्रकार । 14 अल्प-बहुत्व-तुलनात्मकदृष्टि से अल्पता या अधिकता उक्त चौदह उपायो मे सस्या पाठवा उपाय है । उसके द्वारा परिमाण का _ निर्धारण किया जाता है । वह पदार्य की व्याख्या का एक श्रावश्यक अग है । उत्तराध्ययन सूत्र मे पर्याय के छह लक्षण प्रतिपादित है 14 1 एकत्व सदृश परिणति ।। 2 पृयक्त्व विसदृश परिणति । 3 सख्या एक, दो आदि व्यवहार का हेतु । 4 सस्थान प्राकृति । 5 सयोग दो पदार्यो का वाह्य मवध । 6 विभाग दो सयुक्त पदार्थों का अलगाव । द्रव्य गुण-पर्यायात्मक होता है। गुरण उसके स्वभावभूत होते हैं। उनकी प्रतीति पर-निरपेक्ष होती है। पर्याय उसके क्रममावी धर्म हैं। उनकी प्रतीति परसापेक्ष होती है । अल्प-बहुत, ऊंचा-नीचा, दूर-निकट, दो-तीन श्रादि सख्या ये सब पर्याय दूसरे पदार्थों की अपेक्षा से अभिव्यक्त होते हैं, इसलिए ये पर-सापेक्ष हैं। मख्या द्रव्य का आपेक्षिक पर्याय है। वह जाता के ज्ञान पर निर्भर नही है । जिसका अस्तित्व स्वतत्र (ज्ञाता-निरपेक्ष) होता है वह किसी के जानने से निर्मित नहीं होता और न जानने से समाप्त नही होता। जॉन लॉक (1632-1704) ने दो प्रकार के गुण माने हैं- मूलगुण (Primary Qualitres) और उपगुण (Secondary Qualities) । मूलगुण द्रव्यो के वास्तविक धर्म हैं । उपगुण द्रव्यो के वास्तविक धर्म नहीं हैं। वे प्रात्मा के सवेदनमात्र हैं। द्रव्यो का धनत्य (Solidity), Cater (Extension', 44141€ (Shape), vla (Mouoni, faula (Rest) श्रीर संख्या (Number) ये एकाधिक इन्द्रियो के द्वारा प्राप्त होने के कारण मूलगुण है-द्रव्यात वास्तविकताए है। इन्द्रियो का इन मूलगुणो से सम्पर्क होता है तब वे हमारी आत्मा मे सवेदन उत्पन्न करते है। ह्य म ने मानवज्ञान को दो काटियो मे विभक्त किया है । विनानी के पारस्परिक सम्बन्धो का जान Knowledge of the relations of the ideas 2 वस्तु-जगत् का ज्ञान Knowledge of the Matters of fact 14 उत्तरायणारिण, 28/13 एमत्त च पुहत्त च, सख्या सगणमेव य । मजोगा य विभागा य, पज्जवा तु लक्खर ।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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