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( 111 ) गणितशास्त्र और तकशास्त्र मे विजानो के पारस्परिक सम्बन्धो का ज्ञान होता है, इसलिए गणित और तक मे सार्वभौम और अनिवार्य सिद्धान्तो की कल्पना की जा सकती है। दो और दो पार ही होते है यह केवल कल्पना है। इसका वस्तु-जगत् से कोई सम्बन्ध नही है । लॉक और ह्य म ये दोनो अनुभववादी (Idealistic) दार्शनिक हैं। नव-वास्तविकतावादी (New realistic) दार्शनिको के अनुसार संख्याबोव प्रत्यय-जनित नही है । वह प्रत्यक्ष से होता है। दो और दो चार होते हैं यह अभिगम अपने अस्तित्व के लिए किसी समय और क्षेत्र पर आधृत नही है, किन्तु समयो और क्षेत्रो की अपेक्षा के बिना ही सत्य है। इस अभिगम के द्वारा जो सत्य प्रतिपादित होता है वह वास्तविक सत्य है । वह सीधे (प्रत्यक्ष) ही जाना जाता है और सीधे ही चतन्य की अनुभूति में आता है, किसी प्रत्यय के द्वारा नही । वास्तविकतावादी विचार के अनुसार तक और गणित के अभिगम अपना स्वतंत्र (ज्ञाता-निरपेक्ष) अस्तित्व रखते हैं और वैज्ञानिक सिद्धान्तो को श्राविकृत करते है, वनात नही । इस सिद्धान्त से इस विचारधारा को आधार मिला है कि वैज्ञानिक जब फॉरभुलाओ, समीकरणों और निगमन-विश्लेषणो द्वारा कार्य करते हैं, तब वे वास्तविकता के बारे मे ही काम करते है ।
जैन दर्शन की स्वीकृति अनुभववाद और वस्तुवाद इन दोनो से भिन्न है । उसके अनुसार सख्या कल्पना नहीं है, वह वस्तु का एक पर्याय है। उसका बोध न केवल प्रत्यय से होता है और न केवल प्रत्यक्ष से होता है, किन्तु प्रत्यय और प्रत्यक्ष के सकलन प्रत्यभिज्ञा से होता है । जितने सबंधात्मक, तुलनात्मक और साक्षशान होते हैं, वे सारे उसीके द्वारा होते हैं । वह प्रत्यक्ष और स्मृति--इन दोनो के योग से उत्पन्न होता है, इसलिए सापेक्षबोध उसका विषय बनता है। किसी वडी रेखा को ध्यान मे रखकर हम दूसरी रेखा को छोटा कहते हैं । केवल एक रेखा बडी या छोटी नही हो सकती । छोटा और बड़ा यह दो मे ही होता है। पूर्वज्ञान की स्मृति और वर्तमान का प्रत्यक्षशान ये दोनो मिलकर ही उन दो अवस्थाप्रो (छुटपन, वडपन) का बोध करते है। दो रेखाए प्रत्यक्ष होती हैं। उनके तुलनात्मक ज्ञान में भी पूर्वदेष्ट का ज्ञान परोक्ष होता है। दोनो रेखाओ को तुलनात्मक दृष्टि से देखते हैं तब किसी एक रेखा की ओर अभिमुख होते ही दूसरी का ज्ञान परोक्ष हो जाता है। सख्या का ज्ञान भी इसी पद्धति से होता है। हमने देखा घट है, फिर देख) ५८ है, तब हम इन दोनो घट-शानी का सकलन करते हैं दो घट हैं। यह द्वित्व पर्याय सापेक्ष है । दो वस्तुओ की अपेक्षा मे ही यह पर्याय अभिव्यक्त होता है। इस प्रकार अनेकत्वसूचक संख्या के जितने प्रकार हैं वे सब सापेक्ष ही हैं। दो और दो चार होते हैं-यह प्राथमिक वोध प्रत्यक्ष होता है, फिर यह संस्कार बन जाता है। दो युगलो का प्रत्यक्ष होते ही संस्कार जागृत होकर स्मृति का रूप लेता है और दो और दो चार होते हैं,