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साध्य - कोटि की प्रतिज्ञा साधन के द्वारा सिद्ध-कोटि मे आ जाती है, वह निगमन है, जैसे इसलिए पर्वत अग्निमान् है ।
नैयायिक इस पचावयवप्रयोग को स्वीकार करते है । उनके अनुसार इस श्रवयवप्रयोगात्मक अनुमान को पचावयव वाक्य, महावाक्य अथवा न्यायप्रयोग कहा जाता है |
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1 हम जानना चाहते हैं कि संख्या के विषय मे जैन परम्परा का अभिमत क्या है ?
कुछ विचारक जैन दर्शन को परमसाख्य कहते हैं । जैनो का तत्वचिन्तन संख्या-प्रधान रहा है, इसलिए यह कहा भी जा सकता है । श्रागमसाहित्य चार भागो मे विभक्त है
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1 द्रव्यानुयोग - द्रव्यमीमासा, दर्शन |
? चरणानुयोग आचारमीमासा ।
3 धर्मकयानुयोग हण्टान्त, उपमा और उदाहरण 1
4 गणितानुयोग गणितशास्त्र ।
द्रव्यमीमासा और कर्मशास्त्र मे गणित का बहुत उपयोग किया गया है ।
पदार्थ को जानने के चौदह उपाय निर्दिष्ट हैं 13
1 निर्देश नाम निर्देश, स्वरूप निश्चय अधिकारी ।
2 स्वामित्व
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साधन
कारण।
4 अधिकरण आधार ।
5 स्थिति काल-मर्यादा ।
6 विधान प्रकार ।
7 सत् अस्तित्व, सद्भाव |
8 संख्या - गणना, पदार्थ के परिमाण की उपलब्धि का भेदलक्षण वाला
सावन ।
9 क्षेत्र आश्रयस्थान 1
10 स्पर्शन
पावर्ती आकाश-प्रदेशो का स्पर्श ।
11 फाल
अवधि
12 अन्तर दो अवस्थाश्री का मध्यवर्ती अन्तराल |
तत्त्वार्यं सूत्र, 1/7, 8