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जैन तार्किको ने उक्त आक्षेपों की समीक्षा मे कहा कि स्मृति के प्रामाण्य की कसोटी व्यवहार-प्रवर्तन है । पानी पीया, प्यास बुझ गई । मार्ग से चला, लक्ष्य तक पहुच गया । पानी से प्यास बुझती है इस पूर्वानुभव की स्मृति के आधार पर मनुष्य पानी पीता है | अमुक मार्ग अमुक नगर को जाता है - इस पूर्ववोध की स्मृति के आवार पर मनुष्य निश्चित मार्ग पर चलता है । व्यवहार की सिद्धि सवादिता सिद्ध करती है, फिर स्मृति का प्रामाण्य कैसे निरस्त किया जा सकता है, भले फिर वह पूर्वानुभव परतत्र या गृहीतार्थग्राही ज्ञान हो ।
स्मृति अर्थोत्पन्न नहीं है, इसलिए यदि उसे अप्रमाण माना जाए तो अनुमान के प्रामाण्य मे भी कठिनाई उपस्थित होगी । पुष्य नक्षत्र का उदय होगा, क्योंकि इस समय पुनर्वसु नक्षत्र उदित है । पुष्य का उदय होगा, वर्तमान मे वह उदित नही है फिर पूर्वचर हेतु कैसे बनेगा ? उत्तरचर हेतु भी कैसे बन सकता है ? नदी मे बाढ देखकर वर्षा का अनुमान (नैयायिक सम्मत शेषवत् अनुमान) कैसे होगा ? इसलिए स्मृतिज्ञान अर्थोत्पन्न नही है - यह तर्क महत्त्वपूर्ण नही है ।
प्रत्यभिज्ञा
स्मृति का हेतु केवल धारणा है । प्रत्यभिज्ञा के दो हेतु हैं प्रत्यक्ष और स्मरण । इसलिए यह संकलनात्मक ज्ञान है । स्मृतिज्ञान का आकार 'वह मनुष्य' है और प्रत्यभिज्ञा का आकार 'यह वही मनुष्य है' है । 'यह मनुष्य' यह इन्द्रियप्रत्यक्ष है । 'वह' - यह स्मृति है । इन दोनो का जो योग है, वह एकत्वप्रत्यभिज्ञा है ।
शाकाहारी पशु गाय की भाति पानी पीते हैं । मासाहारी पशु गाय की भाति पानी नही पीते । वे जीभ से पानी का लेहन करते हैं । इनमे प्रथम सादृश्य-प्रत्यभिज्ञा और दूसरा वैसदृश्य प्रत्यभिज्ञा है । 'यह उससे छोटा है', 'यह उससे बडा है', 'यह उससे दूर है', 'यह उससे निकट है', यह उससे ऊंचा है', 'यह उससे नीचा है' यह सापेक्ष प्रत्यभिज्ञा है |
सज्ञा और सज्ञी के सबध का ज्ञान भी प्रत्यभिज्ञा से होता है । किसी ने बताया कि जो दूध और पानी को अलग करे वह हस होता है । जिसके तीन-तीन पत्त होते हैं वह पलाश होता हैं । श्रोता न हस को जानता है और न पलाश को ।
उसने देखा,
और पानी
જીસને વતા से सुना और उसके मन मे एक संस्कार निर्मित हो गया । पक्षी की चोच दूध को प्याली मे पडी और दूध फट गया- दूध अलग अलग | प्रत्यक्ष और स्मृति - दोनो का योग हुआ, उसे सज्ञा श्रीर सज्ञी (हस शब्द और इस शब्दवाच्य पक्षी) के सबध का ज्ञान हो गया । इसी प्रकार उसने जगल मे तीन-तीन पत्ते वाले पेड को देखा । प्रत्यक्ष और स्मृति दोनों युक्त हुए और उसे सज्ञा-सज्ञी ( पलाश शब्द और पलाश शब्दवाच्य पेड) के सबध का ज्ञान हो गया ।