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( 91 ) 'यह शंख का ही शब्द है' इस प्रकार का ज्ञान अपाय है ।
शव शब्द के बोध की अविच्युति धारणा है । इस प्रकार पर्यायो का उत्तरोत्तर वोध होता है 125
इन्द्रिय-प्रत्यक्ष की भाति मानस-प्रत्यक्ष भी अवग्रहादि चतुष्टयी के क्रम से होता है । इन्द्रिय-प्रत्यक्ष के क्रम मे अवग्रह तक केवल इन्द्रिया काम करती है और ईहा से उसमे मन का योग हो जाता है । इन्द्रियों का काम वस्तु को जानना और फेवल वर्तमान का वोध करना है । विकल्प उनका काम नही है । वह मन का काम है । प्रश्न हो सकता है कि अवगृहीत विषय को निर्णय की कोटि तक मन ले जाता है. फिर उसे इन्द्रिय-ज्ञान क्यो माना जाए ? इसके समाधान की भाषा यह है कि जिसका आरभ इन्द्रिय-ज्ञान से होता है और जो ज्ञान वस्तु-विषयक होता है, वह 25 मूलपर्याय के बोध को नैश्चयिक अवग्रह-चतुष्टय और उत्तरपर्यायो के वोध
को व्यावहारिक अवग्रह-चतुष्टय कहा जाता है।
एक परपरा अवग्रह को विशेष' मानने के पक्ष मे रही है। उसके अनुसार दर्शन अविभावित-विशेष होता है, जैसे-कुछ है। अपग्रह विभावित-विशेष होता है, जैसे यह रूप है । यह सफेद है या काला-यह सशय है । यह सफेद होना चाहिए यह ईहा है । यह मफेद ही है, काला नही है-यह अवाय है । अकलक के अनुसार 'यह पुरुप है'--इस प्रकार का वोध अवग्रह है । भाषा, अवस्था आदि विशेषो की श्राकाक्षा ईहा है । विशेष के आधार पर निर्णय होना अवाय है, जैसे यह पुरुष दक्षिण प्रदेशवासी है, यह पुरुष युवा है । (तत्वार्यवातिक 1135) जिनभद्र ने इस अवग्रह, ईहा श्रीर श्रावाय की धारा को उपचरित माना है । यह उत्तरोत्तर उद्घाटित होने वाले विशेष) की अपेक्षा सामान्य है, इसलिए इसमें सामान्य का उपचार किया जा सकता है। जव तक अन्तिम विशेष या भेद प्राप्त न हो तब तक सामान्य-विशेष का उपचार किया जा सकता है।
(विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 281-283, वृत्ति इह यद् वस्तुसामान्यमात्रग्रहणमनि६ २यमयमविग्रहो नैश्चयिक समयमात्रकाल प्रथम । तत 'किमिदम्' इत्यन्त रमीहितमस्तुविशेषस्य शब्दविशेषे विज्ञानरूपी योऽवाय स एव हि पुन विनीमीहामवाय चापेक्ष्याऽवग्रह इत्युपचरित सूत्रे, यस्मादेष्यविशेषापेक्षया सामान्यमालम्बते । सामान्यार्थावग्रहण पावग्रह इति । ततो भूय किमय શાહ શર્ડોિ વેત્યાદ્રિ વિશેષાઃ ક્ષાનન્ત રમવાય શાહ શા વેત્યાદ્રિ ! स एव भूयस्तविशेपाकाक्षातो भाविनीमाहामवायमेष्यविशेषाश्चापेक्ष्य सामान्यालम्बनादवग्रह इत्युपचर्यते । इत्येव सर्वत्र सामान्यविशेषापेक्षया यावदन्त्यो भेदस्तदाकाक्षाविनिवृत्तिवति ।)