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________________ रस-योजना २३३ 'मधुबिन्दुक चौपई'' तथा 'सूआ बत्तीसी" काव्य गुरु-भक्ति के आदर्श से परिप्लावित हैं। 'नेमिचन्द्रिका" (आसकरण), 'नेमिचन्द्रिका' (मनरंगलाल), 'नेमिनाथ चरित', 'शिवरमणी विवाह', 'राजुल पच्चीसी', 'नेमिब्याह' काव्यों में भक्ति रस दाम्पत्य रति भाव के रूप में चरमोत्कर्ष पर पहुंचा हुआ दिखायी देता है। यह दाम्पत्य रति भाव लौकिक कम और अलौकिक अधिक है। यह आसकरण कृत 'नेमिचन्द्रिका के अतिरिक्त 'शिवरमणी विवाह' में आध्यात्मिक विवाह के रूप में परिणत हो गया है । कहने का अभिप्राय यह है कि अधिकांश जैन कवियों को भक्त-हृदय प्राप्त था । वे भक्त पहले थे और कवि बाद में । यही कारण है कि उनके काव्यों में अनेक स्थलों पर भक्ति रस की गंगा सहजतः बह उठी है। १. पद्य ५५ से ५७, पृष्ठ १४०। २. सूआ बत्तीसी, पद्य २६-२७', पृष्ठ २७० । ३. नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ १८ । पीव को संग छोड़ नहीं। रहूँगी ध्यान लगाइ । निज पद जाण्यो जी सासतौ, देह तजू दुष दाइ ॥ काजलै टीको धोइकै जी, दिया तंबोल बहाइ । क्षीरोदधि सबै डारियो जी, दीया सबै साजै वेगाइ ॥ -नेमिनाथ चरित, पद्य १६२, १९८, १६६ । ५. शिवरमणी विवाह, पद्य १५-१६ । सो ततक्षण हो जाय चढ़ी गिरिनारि जिनेन्द्र निहारियो । तब राजुल हो तीन प्रदक्षण दे करि जिन जय कारियो । जाय जिन की करी अस्तुति गद्य पद्य सुहावनी । अष्टांग नमि तब भाल भूधरि करै गति मति पावनी ॥ कर कंज संपुट धरे शिर पर दीन वांनी उच्चरी । एक पग से खड़ी राजुल नेमि की अस्तुति करी ॥ -राजुल पच्चीसी, पद्य १६, पृष्ठ ११ । .. नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ २८-२६ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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