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कविषर वनारसीदास
बनारसी विलास
जिन सहस्त्रनाम कविवर ने इस काव्य में १०३ पद्यों द्वारा जिनेन्द्र देव की । १००८ नाम से स्तुति की है रचना शब्दालंकार मय अत्यन्त मनोहर है। अलख, अमूरति, अरस, अखेद,
श्रचल, श्रवाधित, अमर, अवेद । श्रमल, अनादि, अदीन, अक्षोभ, अनातक, अज, अगम, अलोभ ॥
xx ज्ञानगम्य,
अध्यातमगम्य, ___ रमाविराम, रमापति रम्य । अकथ, अकरता, अजर, अजीत,
अवपु, अनाकुल, विपयातीत ॥
चिन्मूरति, चेता, चिद्विलास,
चूड़ामडि, चिन्मय, चन्द्रहास । चारित्रधाम, चित्, चमत्कार,
चरनातम रूपी, चिदाकार ।।
विस्मयधारी,
विश्वनाथ बंध विमोचन
बुद्धिनाथ
वोधमय,
विश्वेश। . चन्नवत्, .
विवुधेश ॥