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________________ ८८ प्राचीन हिन्दी जैन कवि इसमें सरस्वती जिनवाणी की बड़ी मनोहर ढंग से उपासना की गई है प्रत्येक उपमा सरस 1 जिनादेश जाता जिनेन्द्रा विख्याता, विशुद्धा प्रवुद्धा नमो लोक माता । दुराचार दुर्नय हरा शंकरानी, नमो देवि नागेश्वरी जैन वानी ॥ सुधा धर्म संसाधनी धर्मशाला, सुधाताप निर्माशानी मेघमाला । महा-मोह विध्वंसिनी मोक्षदानी, नमो देवि वागेश्वरी जैन वानी ॥ श्रखे वृक्ष शाखा, व्यतीताभिलाषा, कथा संस्कृता प्राकृता देश भाषा । चिदानन्द भूपाल की राजधानी, नमो देवि वागेश्वरी जैन वानी ॥ यह पार्श्वनाथ स्वामी की सुन्दर स्तुति है इसके मूल कर्ता श्राचार्य कुमुदचन्द्र है कविवर ने इसका बड़ा सुन्दर अनुवाद किया है इसमें कुल ३२ छंद हैं । परम ज्योति, परमात्मा, परम ज्ञान परवीन । वन्दों लीन ॥ परमानन्दमय, घट घट अन्तर निर्भय करन परम परधान, भव समुद्र जल तारण यान । शिव मंदिर अघहरण अनिन्द, बन्दहु पास चरण अरविन्द || X X
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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