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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
इसमें सरस्वती जिनवाणी की बड़ी मनोहर ढंग से उपासना की गई है प्रत्येक उपमा सरस 1
जिनादेश जाता जिनेन्द्रा विख्याता,
विशुद्धा प्रवुद्धा नमो लोक माता । दुराचार दुर्नय हरा शंकरानी,
नमो देवि नागेश्वरी जैन वानी ॥ सुधा धर्म संसाधनी धर्मशाला,
सुधाताप निर्माशानी मेघमाला । महा-मोह विध्वंसिनी मोक्षदानी,
नमो देवि वागेश्वरी जैन वानी ॥ श्रखे वृक्ष शाखा, व्यतीताभिलाषा,
कथा संस्कृता प्राकृता देश भाषा । चिदानन्द भूपाल की राजधानी,
नमो देवि वागेश्वरी जैन वानी ॥
यह पार्श्वनाथ स्वामी की सुन्दर स्तुति है इसके मूल कर्ता श्राचार्य कुमुदचन्द्र है कविवर ने इसका बड़ा सुन्दर अनुवाद किया है इसमें कुल ३२ छंद हैं ।
परम ज्योति, परमात्मा, परम
ज्ञान
परवीन ।
वन्दों
लीन ॥
परमानन्दमय, घट घट अन्तर निर्भय करन परम परधान, भव समुद्र जल तारण यान । शिव मंदिर अघहरण अनिन्द, बन्दहु पास चरण अरविन्द ||
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