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________________ प्राचीन हिन्दी जैन कवि धर्म करने वाले को ढोंगी, जो संसार से कोई मतलब न न रखता हो उसे घमंडी और जो अपनी चाह को कम करता हो उसे भाग्यहीन बतलाता है । ८४ जहाँ कहीं साधुओं के गुण देखता है वहाँ ही दोपों को लगाता है । इस तरह दुर्जन मनुष्यों का हृदय मलिन ही होता है । जैन दर्शन की विशेषता MAR जैन दर्शन की क्या मान्यता है उसमें अन्य दर्शनों की अपेक्षा क्या विशेषता है इसका युक्ति पूर्ण वर्णन सुनिए । वेद पाठी ब्रह्म माने निश्चय स्वरूप गहे, मीमांसक कर्म माने उदै में रहत है । बौद्धमती बुद्ध माने सूक्ष्म स्वभाव साधे, शिवमति शिव रूप काल को कहत है । न्याय ग्रन्थ के पढैय्या थापे करतार रूप, उद्यम उदीरि उर आनंद लहत पांचों दरशनि तेतो पोपे एक एक अङ्ग, जैनी जिन पंथि सरवंगनै गहत हैं । वेद पाठी ब्रह्म मानकर निश्चय स्वरूप को ही ग्रहण करते. हैं मीमांसक कर्म रूप मानकर उसके उदय में मन्न रहते हैं बौद्धमती बुद्ध मानकर सूक्ष्म स्वभाव की ही साधना करते शिवमती प्रलय रूप ही शिव कहते हैं और न्याय प्रन्थ के पढ़ने वाले कर्ता रूप स्थापित करते हैं और पुरुषार्थ को हेय मानकर
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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