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कविवर वनारसीदास
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जिनके यश का वर्णन करने से हृदय में प्रकाश की किरणें जगती हैं और मलिन बुद्धि शुद्ध हो जाती है।
बनारसीदासजी कहते हैं वह सुन्दर मूर्ति उन्हीं जिनेन्द्र देव की आकृति है जिनकी महिमा संसार में प्रसिद्ध है। दुर्जन का मन
दुर्जन मनुष्यों का हृदय कैसा होता है इसको कविवर ने बड़े ही आकर्षक ढंग से बतलाया है। सरल को सठ कहै वकता को धीठ कहै,
विनै करै तासों कहै धन को अधीन है। क्षमी को निवल कहै दमी को अदत्ति कहै, ___ मधुर वचन बोले तासों कहै दीन है । धरमी को दंभी निसप्रेही को गुमानी कहे,
तृपणा घटावे तासों कहे भाग्यहीन हैं। जहाँ साधु गुण देखे तिनकों लगावे दोप,
ऐसो कछु दुर्जन को हिरदो मलीन है ॥
सरल और सीधे मनुष्य को मूर्ख कहता है, बोलने वाले को धृष्ठ और जो विनय करता हो उसे धनहीन समझता है। - क्षमावान पुरुप को कमजोर, जो अपनी इन्द्रियों को वश में रखता हो उसे लोभी और जो मधुर वचन बोलता हो ‘उसे दीन कहता है।