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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
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संसार की कष्ट दशा का निरीक्षण भयानक रस, आत्मा के अनंत वल का चिन्तन अद्भुत रस और स्वाभाविक निश्चल वैराग्य शांत रस है।
___इस प्रकार नव रस के विलास का प्रकाश तभी होता है जब हृदय में आत्म-बोध प्रकट होता है। मूर्ति की महिमा
मूर्ति के द्वारा आत्म सिद्धि की प्राप्ति वतलाते हुए कविवर उसकी उपयोगिता को किस प्रकार सिद्ध करते हैं। जाके मुख दरस सों भगति के नैननि कों,
थिरता की वानिः बढ़े चंचलता विनसी । मुद्रा देखें केवली की मुद्रा याद आवे जहाँ,
जाके आगे इन्द्र की विभूति दीप्तै तिनसी ।। जाको जस जपत. प्रकाश जगे हिरदे में,
सोई शुद्ध मति धरे हति जो मलिन सी। कहत बनारसी सुमहिमा प्रगट जाकी,
सोहै जिनकी सुछवि विद्यमान जिन सी ।।
जिनके मुंह का दर्शन करने से भक्त के नेत्रों में स्थिरता बढ़ती है और चंचलता नष्ट हो जाती है। .
जिनकी मुद्रा को देखकर पूर्ण ज्ञानी सर्वज्ञ की मुद्रा का स्मरण होता है और जिनके समोशरण की विभूति के साम्हने इन्द्र की विभूति भी तिनके के समान जान पड़ती है।