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कविवर वनारसीदास
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चिन्ता में भयानक, अथाह पदार्थ में अद्भुत, और माया की अरुचि में शान्ति रस रमता है।
यही नव रस भाव रूप हैं और यही भव रूप अर्थात् संसार के कारण हैं।
आत्म ज्ञान जगने पर इनकी विलक्षणता जानी जाती है।
नव रस कल्पना
आत्म ज्ञान के द्वारा नव रसों में उत्पन्न हुई विलक्षणता का वर्णन कवि की मनोहर कल्पना द्वारा सुनिए। गुण विचार शृंगार, पीर उद्यम उदार रुख ।
करुणा रस सम रीति, हास्य हिरदे उच्छाह सुख । अष्ट करम दल मलन, रुद्र वरते तिहि थानक ।
तन विलक्ष वीभत्स, द्वंद दुख दशा भयानक । अद्भुत अनंत वल चितवन, शांत सहज वैराग्यध्रुव । नवरस विलास परकाश तब,जव सुबोधघट प्रगट हुच।।
आत्मा के सुन्दर गुणों का विचार करना शृंगार रस, आत्मा के उदार गुणों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना वीर रस, और समभाव हो करुणा रस है।
__ आत्म सुख की तरंगे उमड़ना हास्य रस, अष्ट कर्मों को पछाड़ना रौद्र रस और शरीर को विलक्षण दशा का निरीक्षण वीभत्स रस है।