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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
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वह ज्ञान सूर्य को उत्पन्न करने के लिये पूर्व दिशा है। सांसारिक सुखों की याचना न करने वाली आत्म-स्थल में रमने वाली सच्ची विभूति है।
__ आत्म-धन की रक्षा करने वाली आत्मा में मग्न होने चाली जिसे रस के पंथ में और ग्रंथों में राधिका माना गया है ऐसी संतों की मानी हुई मुक्ति प्रदान करने वाली शोभा की निशानी राधिका सुमति रानी है। नवरसों के पात्र
नवरसों के पात्रों की सुन्दर व्याख्या करते हुए कविवर कहते हैं। . शोभा में श्रृंगार बसे वीर पुरुषारथ में,
कोमल हिये में करुणा रस बखानिये । आनंद में हास्य रुन्ड मुन्ड में विराजे रुद्र, .
वीभत्स तहां जहां गिलानि मन आनिये। चिंता में भयानक अथाहता में अद्भुत,
भाया की अरुचि तामें शांत रस मानिये । • येई नव रस भव रूप येई भाव रूप,
इनको विलक्षण सुदृष्टि जगें जानिये ।
शोभा में शृङ्गार रस, पुरुपार्थ में वीर रस, और कोमल . हृदय में करुणा रस निवास करता है।
आनन्द में हास्य, रुन्ड मुन्डों में रौद्र, और ग्लानि में , वीभत्स रस रहता हैं।