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________________ mann^^^^^A कविवर वनारसीदास ७९ जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी को दवाए रहता है और जिस तरह चुंगुल के जोर से गोह भूमि को पकड़े रहती है उसी तरह अपनी हठ को नहीं छोड़ता । मोह की मरोड़ से जिसे भ्रम का पता नहीं लगता और जिस तरह मकड़ी जाल को बढ़ाती है उसी तरह सारे संसार में दौड़ लगाता फिरता है । इस तरह ममता की जंजीरों से जकड़ी हुई माया के झरोखों में भूली हुई दुबुद्धि फूली हुई फिरती है । सुमति राधिका करते हैं । सुमति राधिका का वर्णन कविवर कितने मनोहर ढंग से रूप की रसीली भ्रम कुलप की कीली, शील सुधा के समुद्र झीलि सीलि सुखदाई है । प्राची ज्ञान भान की अजाची है निदान की, सुराची निरवाची ठौर सांची ठकुराई है । धाम की खबरदार राम की रमनहार, 1 राधा रस पंथनि में ग्रन्थनि में गाई है । संतन की मानी निरवानी रूप की निसानी, यातें सद्ब ुद्धि रानी राधिका कहाई है । सुमति रानी रूप के रस से भरी हुई भ्रम ताले को खोलने की चाबी, शील रूपी सुधा के समुद्र के कुंड की सील के समान सुख देने वा
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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