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कविवर वनारसीदास
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जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी को दवाए रहता है और जिस तरह चुंगुल के जोर से गोह भूमि को पकड़े रहती है उसी तरह अपनी हठ को नहीं छोड़ता ।
मोह की मरोड़ से जिसे भ्रम का पता नहीं लगता और जिस तरह मकड़ी जाल को बढ़ाती है उसी तरह सारे संसार में दौड़ लगाता फिरता है ।
इस तरह ममता की जंजीरों से जकड़ी हुई माया के झरोखों में भूली हुई दुबुद्धि फूली हुई फिरती है ।
सुमति राधिका
करते हैं ।
सुमति राधिका का वर्णन कविवर कितने मनोहर ढंग से
रूप की रसीली भ्रम कुलप की कीली,
शील सुधा के समुद्र झीलि सीलि सुखदाई है । प्राची ज्ञान भान की अजाची है निदान की,
सुराची निरवाची ठौर सांची ठकुराई है । धाम की खबरदार राम की रमनहार,
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राधा रस पंथनि में ग्रन्थनि में गाई है । संतन की मानी निरवानी रूप की निसानी, यातें सद्ब ुद्धि रानी राधिका कहाई है । सुमति रानी रूप के रस से भरी हुई भ्रम ताले को खोलने की चाबी, शील रूपी सुधा के समुद्र के कुंड की सील के समान सुख देने वा