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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
सुबुद्धि लक्ष्मी है, आत्म अनुभव कौस्तुभ मणि, वैराग्य कल्पवृक्ष और शुभ उपदेश ही शंख है।
उद्यम ऐरावत हाथी, आत्म प्रतीति रंभा, कर्मोदय विप, निर्जरा कामधेनु और आत्म आनंद ही अमृत है।
___ ध्यान धनुष, आत्म प्रेम मदिरा, विवेक वैद्य, शुद्ध भाव चन्द्रमा और मन चंचल घोड़ा है।
इस तरह हृदय के मथन से ज्ञान का प्रकाश होने पर ये चौदह रत्न प्रकट होते हैं। सप्त व्यसनों का सच्चा स्वरूप
कविवर द्वारा किया हुआ सप्त व्यसनों का सुन्दर अध्यात्मिक विवेचन सुनिए और उनके त्यागने का प्रयत्न कीजिए। अशुभ में हार शुभ जीति यह छूत कर्म, .
देह की भगनताई यहै मांस भखियो । मोह की गहल सों अजान यहै सुरापान,
कुमती की रीति गणिका को रस चखिवो ॥ निर्दय ह प्राण घात करवो यहै सिकार,
परनारी संग पर बुद्धि को परखियो । प्यार सों पराई सौंज गहिवे की चाह चोरी,
एई सातों व्यसन विडारे ब्रह्म लखियो ।