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________________ ७२ प्राचीन हिन्दी जैन कवि आत्मा की लीलाएं . कर्मों की संगति से चेतन (आत्मा) क्या २ लीलाएँ करता है इसका सुन्दर वर्णन सुनिये:एक में अनेक है अनेक ही में एक है सो, एक न अनेक कछु कह्यो न परतु है। करता अकरता है भोगता अभोगता है, उपजे न उपजत मरे न मरत है। बोलत विचारत न बोले न विचारै कछु, मेख को न भाजन पै मेख को धरत है। ऐसो प्रभु चेतन अचेतन की संगति सों, उलट पलट नट बाजी सी करत है। निश्चय रूप से एक होने पर भी जो व्यवहार में अनेक रूप है और अनेक होने पर भी एक रूप है परन्तु वास्तव में एक रूप है अथवा अनेक रूप है यह कुछ नहीं कहा जा सकता। कर्ता भी है और अकर्ता भी है। कर्मफल का भोगनेवाला भी है और निश्चय से न कुछ करता है न भोगता है। व्यवहार से पैदा होता और मरता है किन्तु निश्चय से न तो पैदा होता है न मरता ही है। व्यवहार रूप से बोलता विचारता है परन्तु वास्तव में न तो कुछ बोलता है न विचारता है । भेष का धारक न होने पर भी अनेक भेषों को धारण करता है। इस तरह चेतन प्रभु अचेतन की संगति से उलट-पलट कर. नटवाजी-सी करता है।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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