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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
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संसार में क्या श्रेष्ठ है
संसारी मनुष्य जिन पदार्थों को श्रेष्ठ मानता है उनके अंतरंग में क्या रहस्य भरा हुआ है इसका वर्णन कविवर कितना सुन्दर करते हैं। हांसी में विपाद बसे विद्या में विवाद वसे,
काया में मरण गुरु वर्तन में हीनता । शुचि में गिलानि वसे प्रापती में हानि बसे,
जय में हारि सुन्दर दशा में छवि छीनता ।। रोग बसे भोग में संयोग में वियोग वसे,
गण में गरब बसे सेवा मांहि दीनता । और जग रीति जेती गर्मित असाता सेती, साता की सहेली है अकेली उदासीनता ॥
हँसी में विषाद (खेद ) विद्या में विवाद, काया में मरण और बड़ी-बड़ी बातों में हीनता छुपी रहती है।
शुद्धि में ग्लानि, लाभ में हानि, जय में हार और सुन्दरता में कुरूपता की भयंकर कल्पनाएं भरी रहती हैं।
__ भोग में रोग, संयोग में वियोग, गुण में घमंड और सेवा में दीनता की भावना समाई रहती है।
इसी तरह संसार की ओर जितनी साता पूर्ण सामग्रिएँ हैं वे सभी असाता रस से सनी हुई हैं। सच्ची शान्ति की सहेली तो केवल उदासीनता ही है । और संसार में वही सर्व श्रेष्ठ है।