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कविवर बनारसीदास
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रात्रि दिन चलना ही जिसका काम है जिसके कंधों पर जीत लगा हुआ है और जो कायर मन होकर वार वार ही पार की तकलीफ सहन करता है।
भूग्य प्यास और दुष्ट जनों के बास को सहता हुआ एक क्षण के लिए भी कभी साँस नहीं ले पाता और न स्थिरता पाता है। इस तरह जैसे कोल्हू का कमाऊ वैल पराधोन घूमता है उसी तरह यह संसारी प्राणी भी कर्मों के कोल्हू से बंधे हुए बैल की तरह धूमते रहते हैं। अपराधी कौन है जाके घट समता नहीं, ममता मगन सदीय । रमता राम न जानही, सो अपराधी जीव ॥
जिसके हृदय में समता नहीं है जो ममत्व में ही सदा फँसा हुआ है और अपने आत्म राम को नहीं जानता वह जीव महा अपराधी है। आत्म ज्ञानी की एकता राम रसिक अरु राम रस, कहन सुनन को दोइ ।
जब समाधि परगट भई, तब दुविधा नहिं कोई ॥ . आत्म रस और आत्म रसिक कहने सुनने को तो दो हैं परन्तु जिस समय समाधि प्रगट होती है उस समय दोनों में कोई दुविधा नहीं रहती दोनों एक ही हो जाते हैं।