________________
प्राचीन हिन्दी जैन कवि ommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmin mmmmm ___ फंदा ही को कंदा खोदे खेती को सो जोधा हैं । वाधा सेती हांता जोरे, राधा सेती तांता जोरे, __वांदी सेती नांता जोरे चांदी को सो सोधा है। जाने जाही ताही नीके माने राही पाही पीके, ठाने बातें डाही ऐसो धारा-चाही वोधा है।
ज्ञानी आत्मा महाराणा जैसा बाना सजाए हुए है। वह आत्म राज्य की साधना करता है और अपने राज्य को पहचानता है विशाल ज्ञान अङ्गों वाला अनेक नयों को जानने वाला वह बड़ा बहादुर योद्धा है। . जहाँ जहाँ माया की बेल फैली हुई है उसे खोद डालता है और खेती के किसान की तरह कर्मों के फंदों की जड़ को उखाड़ के, फेंक देता है।
वह वाधाओं से युद्ध करता है, सुमति राधिका से स्नेह जोड़ता है कुबुद्धि दासी से सम्बन्ध तोड़ता है और स्वर्णकार की तरह अपना आत्म शोधन करता है।
अपने आत्म-राज्य को प्राप्त कर उसको निश्चय से अपना जानता है और पूर्ण आत्म विश्वास रखता है। ..
श्रेष्ठ क्रियाओं को करने वाला ऐसा वह धारा-प्रवाही आत्म ज्ञानी है। . . . . . . ज्ञान कहाँ है? ___ ज्ञान कहाँ रहता है इसका कविवर वर्णन करते हैंभेष में न ज्ञान नहिं ज्ञान गुरु-वर्तन में, .
जंत्र मंत्र तंत्र में न ज्ञान की कहानी है।