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कविवर वनारसीदास
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जिन्हके सरल चित्त कोमल वचन बोलें,
सौम्य दृष्टि लिए डोले मोम कैसे गढ़े हैं। जिनके सकति जागी अलखि अराधिवेकों,
परम समाधि साधिवे को मन पढ़े हैं। तेई परमार्थी पुनीत नर आठों याम, ___राम रस गाढवे को यह पाठ पढ़े हैं ॥
जिनको सद्बुद्धि गुणों को पकड़ने के लिए चिमटी के समान है और खोटी कथाओं को सुनने के लिए जिनके दोनों कान मढ़े हुए हैं।
जिनका चित्त सरल है जो कोमल वचन बोलते हैं मोम के चित्र की तरह जो समता दृष्टि धारण किए रहते हैं।
जिनके हृदय में आत्मा के आराधने की शक्ति पैदा हुई है और आत्म समाधि साधने के लिए जिनका मन बढ़ा हुआ है वही पवित्र, परमार्थी, आत्म ज्ञानी मनुष्य आठों पहर आत्म-रस के स्वाद को पाते हैं और आत्म-ज्ञान का ही पाठ पढ़ते रहते हैं। ज्ञानी योद्ध • आत्मा के प्रताप का वर्णन करते हुए कविवर उसकी तुलना एक बहादुर योद्धा से करते हैं। इसमें कवि ने सभी दीर्घ अक्षरों का प्रयोग किया। राणा को सो वाणा लीने आपा साधे थाना चीने,
दाना अंगी नाना रंगी खाना जंगी जोधा है। माया वेली जेती तेती रेतें में धारेती सेती,