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कविवर वनारसीदास
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हिरदै हमारे महामोह की विकलताई,
तातें हम करुना न कीनी जीवघातकी। आप पाप कीने औरनि को उपदेश दीने,
हुती अनुमोदना हमारे याही बात की। मन, वच, काया में मगन हकमायो कर्म,
धाये भ्रमजाल में कहाए हम पातकी । ज्ञान के उदय तें हमारी दशा ऐसी भई,
जैसे भानु भासत अवस्था होत प्रात की ।
श्रात्म ज्ञान के अभाव में हमारा हृदय महामोह की विकलता से चेकल था इसीलिए हमने किसी प्राणी के घात करने में कभी जरा भी करुणा नहीं की।
खुद पाप किए, दूसरों को पाप करने का उपदेश दिया और हमारे हृदय में पाप करने वालों की अनुमोदना करने की भावना रही। मन, वचन और काया के खोटे प्रयत्नों में मग्नहोकर हमने खोटे कर्मों को कमाया और भ्रमजाल की ओर ही दौड़कर पाप कमाकर हम पापी कहलाए ।
अघ ज्ञान का उदय होने से हमारी हालत ऐसी हो गई है जैसे सूर्य के उदय होने पर सबेरे को होती है। सूर्य का प्रकाश होने पर अंधकार नष्ट हो जाता है उसी तरह मेरे हृदय का मोह अंधकार अव दूर हो गया। ज्ञानी की अवस्था
ज्ञानो आत्मा सभी क्रियाओं को करते हुए भी किस तरह निष्कलंक रहता है इसका अनेक उपमाओं द्वारा बड़े ही मनोहर ढंग से वर्णन किया गया है।