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________________ प्राचीन हिन्दी जैन कवि जे जे जगवासी जीव थावर जंगम रूप, ते ते निज बस करि राखे चल तोरिक । महा अभिमानी ऐसो आश्रव अगाध जोधा, रोपि रण-थंभ ठाडो भयो मूछ मोरि कै ॥ आयो तिहि थानक अचानक परम धाम, ज्ञान नाम सुभट सवायो वल फोरि कै । आश्रव पछारयो रण थंभ तोड़ डारयो, ताहि निरखि वनारसी नमत कर जोरि कै ॥ जिसने संसार के सभी, थावर और जंगम जीवों का धमंड चकनाचूर करके उन्हें अपने आधीन बना रक्खा है। ऐसा महान अभिमानी आश्रव (कर्मों के आने का दरवाजा) रूप प्रचंड वीर रण थंभ रोप कर और मूछ मरोड़ कर खड़ा हुआ। उसी समय उस स्थान पर आत्म ज्ञान नामक वीर सैनिक अपना सवाया बल बढ़ाकर आया । ___ उसने आश्रव को पछाड़ दिया और रण थंभ तोड़ डालाउसे देखकर कविवर बनारसीदास हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। ज्ञान के आने पर आत्म दशा, ज्ञान के प्रकाश में आते ही ज्ञानी आत्मा की कैसी दशा हो जाती है उसके हृदय में किन विचारों की तरंगें लहराने लगती हैं इसका हृदयग्राही वर्णन सुनिए ।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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