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कविवर बनारसीदास
aamananAMAAHIRAL
...MARHAR Kanhavan
काँच बाधै शिरसों सुमणि पाँधे पायनि सो.
जाने न गवार कैसा मणि केसा काँच है। थोंही मूढ झूठ में मगन झूठ ही को दौरे, . झूठ बात माने पै न जाने कहा साँच है। मणि को परखि जाने जौहरी जगत माहीं,
सांच की समझ ज्ञान-लोचन की जांच है। जहां को जुवासी सो तो तहाँ को मरम जाने,
जापे जैसो स्वांग तापे तैसे रूप नाच है ।।
मूर्ख मनुष्य काँच को शिर से बाँधता है और हीरे को पैरों में डालता है वह नहीं जानता की मणि क्या है और कांच क्या है। उसी तरह अज्ञानी आत्मा मिथ्या बासनाओं में ही मग्न रहता है उसोको पकड़ने के लिए दौड़ता है, उसीको अपना. मानता है वह नहीं जानता कि सत्य कहाँ है।
संसार में जिस तरह जौहरी होरे की परख जानता है उसी तरह ज्ञान नेत्र ही सत्य की जाँच करते हैं अज्ञानी नहीं।
जो जहाँ का रहने वाला है वह वहाँ का ही भेद जानता है। जिसका जैसा स्वांग होता है वह उसी तरह नाचता है।
अज्ञानी अज्ञान में ही मन रहता है और ज्ञानी ज्ञान के प्रकाश में निरीक्षण करता है। ज्ञान की विजय
अव जरा कर्मों के द्वार रूप बहादुर श्राश्रव योद्धा के घमंड को चूर करने वाले ज्ञान की वीरता को देखिए ।