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कविवर बनारसीदास
MAHARAN
सोने वाला अज्ञानी
अज्ञानी आत्मा किस तरह नींद की खुमारी ले रहा है और भ्रम के स्वप्न में किस तरह भूला हुआ है इसका अलंकार मय वर्णन सुनिए। काया चित्रसारी में करम पर जंक भारी,
माया की सवारी सेज चादर कलपना । शैन करे चेतन अचेतनता नींद लिए, ___ मोह की मरोर यहै लोचन को ढपना ।। उदै वल जोर यहै श्वास को शवद घोर,
विपै सुखकारी जाकी दौर यहै सपना । ऐसी मूढ़ दशा में मगन रहे तिहुँ काल,
धावे भ्रम-जाल में न पावे रूप अपना ।।
काया की चित्र शाला में कर्म का पलंग बिछाया गया है उस पर माया की सेज सजाकर मिथ्या कल्पना का चादर डाला गया है। उसपर अचेतना की नींद में चेतन सोता है। मोह की मरोड़ नेत्रों का बंद करना है। कंम के उदय का बल ही श्वास का घोर शब्द है और विषय सुख की दौर ही स्वप्न है।
इस तरह तीनों काल में अज्ञान की निद्रा में मग्न रहकर यह आत्मा भ्रम जाल में ही दौड़ता है कभी अपने स्वरूप को नहीं पाता है। अज्ञानी मनुष्य की दशा
संसार के अज्ञानी अभिमानी मनुष्यों की दुर्दशा का कविवर ने बड़ा सुन्दर चित्र खींचा है।
जया है। उसपर न करना है। की दौर ही खा में मग्न रहकर