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कविवर बनारसीदास
कविवर का हृदय कितना विशाल और उदार है उन्हें किसी पक्ष का मोह नहीं है उनका उपास्य वही है जिसके हृदय में आत्म विज्ञान की तरंगें लहराती हैं । कविवर की 'जिनेश्वर के लघु नंदन ' उक्ति बड़ी ही सरस और गंभीर है । शब्दों की सरलता और भावों की गंभीरता प्रशंसनीय है ।
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दृष्टी का वर्णन
अब जरा पक्षपाती मिथ्यादृष्टी के हृदय का भी निरीक्षण कीजिए ।
धरम न जानत वखानत भरम रूप,
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ठौर ठौर ठानत लड़ाई भूल्यो अभिमान में न पाँव धरे हिरदे में करनी विचारे फ़िरै डाँवाडोल सो करम के कलोलनि में, हाॅ रही अवस्था ज्यू ँ भूल्या कैसे पातकी ॥ जाकी छाती ताती कारी कुटिल कुवाती भारी,
ऐसो ब्रह्मघाती है मिथ्याती महापातकी ।
पक्षपात की 1 धरनी में, उत्पात की ।
जो धर्म को बिलकुल ही नहीं जानता किन्तु जनता को धोखे में डालने के लिए मिथ्या भ्रम रूप वर्णन करता है और हर जगह पक्षपात की लड़ाई लड़ाता रहता है । जो घमंड के नशे में मस्त होकर कभी जमीन पर पैर नहीं रखता और अपने हृदय में हमेशा उत्पात की ही बात सोचा करता है । कर्म तरंगों में पड़कर जिसका मन तूफान में पड़े हुए पत्ते की तरह इधर उधर डोलता है। जिसकी छाती पाप की आग से तप रही हैं ऐसा महा दुष्ट